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११४. पत्र : जी० ई० चैटफील्डको

आश्रम
सितम्बर २९ [१९१९]

प्रिय श्री चैटफील्ड,

अनसूयावेनने अभी-अभी मुझे वह आदेश दिखलाया है जिसके द्वारा अप्रैलके उपद्रवोंके सिलसिले में मिल-मजदूरों सहित अहमदाबाद के समस्त नागरिकोंपर तावान बैठाया गया है। यह भी मालूम हुआ है कि मिल मालिक आज ही मिल मजदूरोंसे यह तावान वसूल करेंगे और वे जमानतके रूपमें मजदूरों द्वारा जमा राशिमें से उनकी एक सप्ताह की मजदूरीकी रकम डिप्टी कलक्टर साहबको दे देंगे। मैं समझता हूँ कि मिल मजदूरोंको इस तावानकी बात सुनकर बड़ा ताज्जुब होगा। क्या यह ज्यादा अच्छा न होगा कि उनको थोड़ा समय दिया जाये, जिससे कि वे स्थितिको ठीकसे समझ सकें और खुद ही व्यक्तिगत या सामूहिक तौरपर इसकी अदायगी करें। इस प्रकारकी एकतरफा कार्रवाई सरकारकी दृष्टिसे ठीक हो सकती है और शायद मिल-मालिकों को भी यही पसन्द आये। लेकिन जिस पक्षपर तावान लगाया जा रहा है उससे बिलकुल ही बिना कुछ कहे-सुने बाला बाला वसूलीका यह सिद्धान्त मुझे बड़ा ही खतरनाक और पस्ती पैदा करनेवाला लगता है। मैं तो समझता हूँ कि सरकारको भी यह बात रुचेगी कि मिल मजदूर स्वयं ही अपने दायित्वको समझें, अनुभव करें और अपनी गरिमा पहचानें।

फिर मुझे यह पता नहीं कि आपको इस बातकी जानकारी है या नहीं कि आगामी कुछ दिन मुसलमानों और हिन्दुओं दोनों ही के लिए धार्मिक महत्त्वके दिन हैं। मुहर्रमके दिन तो हमेशा ही भारतभर में सरकारके लिए बड़ी चिन्ताके दिन रहते हैं। निःसन्देह ही आपने और इस निर्णयसे सम्बन्धित अन्य लोगोंने भी इस तावानका समय निर्धारित करते समय इसका ध्यान नहीं रखा। परन्तु आप मेरी इस बातसे तो सहमत होंगे ही कि मिल मजदूर वैसे ही बड़े शंकालु रहते हैं और इसे देखकर तो वे तत्काल इसी नतीजेपर पहुँचेंगे कि तावान जमा करनेका यह समय खास तौरपर उनकी भावनाओंको चोट पहुँचाने और उनको परेशान करनेके लिए ही चुना गया है। इसलिये मेरा सुझाव है कि मिल मजदूरोंसे इसकी वसूली दिवालीकी छुट्टियोंके बादतक के लिए स्थगित कर दी जाये। आपको ऐसा आश्वासन देनेकी आवश्यकता प्रतीत नहीं होती कि इस बीच मिल मजदूरोंसे सम्बन्ध रखनेवाले सभी लोग इसकी वसूलीमें आसानी पैदा करनेके लिए जितना भी उनसे