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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बड़ी दिलचस्पी है। अतः मुझे आशा है कि जहाँतक पंजाबका सम्बन्ध है, मेरे विरुद्ध जारी किये गये आदेश लौटा लिये जायेंगे।[१]

[हृदयसे आपका]

[अंग्रेजीसे]

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया: होम डिपार्टमेंट: पोलिटिकल ए: अक्तूबर १९१९: फाइल सं० ४२६-४४० तथा अंग्रेजी मसविदे (एस०एन० ६९११) की फोटो नकलसे।

११६. पत्र : शुएब कुरैशीको

[ सितम्बर, १९१९][२]

प्रिय भाई,

अली बन्धुओंके सम्बन्धमें 'यंग इंडिया' के सम्पादकके नाम, आपके तथा अन्य मित्रोंके हस्ताक्षरोंसे भेजे गये पत्रका उत्तर में न दे सका। आशा है, इसे आप मेरी अशिष्टता न मानेंगे। बात यह है कि मैं एक साथ दो महत्त्वपूर्ण समाचारपत्रोंके[३] सम्पादनकी चिन्ताके भारसे बुरी तरह दबा रहा हूँ। कहना पड़ेगा कि आपका पत्र मुझे तनिक भी अच्छा नहीं लगा। यह तो किसी वकीलके पत्र जैसा लगता है, जो वाक् छलसे भरा हुआ है। लेकिन, खैर इतने तक भी कोई बात न थी। मगर आप सचमुच ऐसा मानते हैं कि एक मुसलमान दूसरे मुसलमानको, चाहे वह कैसा भी अपराध करे, नहीं मार सकता? अगर आप वैसा रुख अपनायें भी तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा, क्योंकि तब तो यह माना जायेगा कि आप ब्राह्मण स्मृतिकारोंके नियमका अनुसरण कर रहे हैं। ब्राह्मण स्मृतिकारोंका विचार है और जैसा कि दूसरे लोगोंने सम्भाव्य मान लिया है, उन्होंने यह व्यवस्था देकर कि किसी ब्राह्मणने चाहे जितना बड़ा अपराध किया हो उसे मारा नहीं जा सकता, उसे अवध्य बना दिया है। हाँ, यह सत्य है कि लोगोंने इस नियमका पालन कम और उल्लंघन ही ज्यादा किया है। क्योंकि युद्धमें तो हमने ब्राह्मणोंकी हत्या करनेमें कोई संकोच नहीं किया है। इसलिए किसीकी मानसिक प्रवृत्ति विशेषसे मेरा कोई झगड़ा नहीं है। मेरी आपत्ति तो इस बातपर है कि आप हमारे मित्रोंका पक्ष-समर्थन करनेके लिए कुरानकी आयतोंको उद्धृत क्यों कर रहे

  1. गांधीजीने इसी सम्बन्धमें २ अक्तूबर, १९१९ को एक तार भी दिया था और निषेधाचा १५ अक्तूबर, १९१९को हटा ली गई थी।
  2. इस पत्रको सही तारीख मालूम नहीं है; तथापि यह सितम्बरके अन्तमें लिखा गया लगता है।
  3. तात्पर्थं गुजराती नवजीवन और अंग्रेजी यंग इंडिया, इन दो साप्ताहिकोंसे है। वैसे तो नवजीवनके सम्पादनका दायित्व गांधीजीपर पूरी तरहसे ७ अक्तूबर, १९१९ से और यंग इंडियाके सम्पादनका दायित्व ८ अक्तूबर, १९१९ से आया लेकिन इससे पहले भी वे इन दोनों पत्रोंके लिए काफी सम्पादकीय लेख लिखा करते थे।