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पंजाबके विद्यार्थी

हैं। मैं तो आपसे किसी ऐसे पत्रकी अपेक्षा करता था जो तर्क-बुद्धिको ठीक जँचे। आपका पत्र पाने से पूर्व ही मैंने बारी साहबको[१] लिखा था कि मेरे विचारसे तो जबतक टर्कीके साथ जिन शर्तोंपर सन्धि होनी है, वे शर्तें घोषित नहीं की जाती तबतक अली बन्धुओंकी मुक्तिके लिए चलाये गये किसी भी आन्दोलनके सफल होनेकी सम्भावना नहीं है । मुझे नहीं मालूम कि आपका पत्र, जो आपने सामान्य रूपसे सभी अखबारोंके नाम लिखा है, कहीं अन्यत्र प्रकाशित हुआ है या नहीं।

[हृदयसे आपका]

कुरैशी शुएब

मार्फत डॉ० अंसारी[२]

दिल्ली

पेंसिलसे लिखे हुए मूल अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ६८६४) से।

११७. पंजाबके विद्यार्थी

इस माहकी २२ वीं तारीखके 'लीडर' में जो पत्र 'वन हू फील्स' के नामसे प्रकाशित हुआ है वह एक महत्त्वपूर्ण पत्र है। उसमें मेरे पास पंजाब से आनेवाले अनेक पत्रोंमें - जिनमें से कुछ तो 'यंग इंडिया' में प्रकाशित हो चुके हैं - जो बात कही गई है उसकी पुष्टि की गई है। कॉलेजके अधिकारियोंने जो कुछ किया है वह शोभनीय नहीं कहा जा सकता। 'लीडर' जनसाधारणको सूचित करता है कि 'वन हू फील्स' "पंजाबके शिक्षाजगत् के अत्यन्त प्रतिष्ठित और अग्रगण्य व्यक्ति हैं।" बहुत कहें तो विद्यार्थियोंका अपराध यही था कि वे विद्यालयोंसे अनुपस्थित रहे थे। यह तो छात्रों द्वारा सरकारकी कार्रवाईके खिलाफ अपनी भावना, और वे जिन्हें प्यार करते हैं उनके प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित करनेके बाल-सुलभ प्रदर्शनसे अधिक कुछ नहीं है। भारतके अलावा अन्य किसी भी देशमें इस प्रकारके कामपर कोई ध्यान भी नहीं देता। अथवा वहाँ कॉलेजके आचार्य अपने विद्यार्थियोंका साथ देते और अधिकारियोंका ध्यान उनकी कार्रवाईकी अप्रियताकी ओर खींचते। परन्तु अधिकारियोंकी कार्रवाईसे यह बात बहुत अधिक स्पष्ट हो जाती है कि पंजाबके सार्वजनिक जीवन में आतंकवाद किस हदतक अपने हाथ दिखा रहा है। कॉलेजके अधिकारियोंने विद्यार्थियोंको कापुरुषताका पदार्थपाठ पढ़ाया है। हड़ताल करानेवाले छात्र नेताओंके नाम मालूम करनेके लिए उन्होंने सजाकी धमकी देनेमें भी संकोच नहीं किया। प्रत्यक्ष है कि लड़कोंने किसीके उकसानेपर हड़ताल नहीं की थी बल्कि वह स्वतःस्फूर्त थी और वस्तुतः सभी छात्र हड़तालके मुखिया थे। ऐसे अवसरोंपर बुद्धिमानीका काम

  1. मौलाना अब्दुल बारी।
  2. डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी।