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१२०. भाषण : बम्बईके अभिनन्दन समारोह में[१]

अक्तूबर १, १९१९


सभाकी कार्यवाही प्रारम्भ करते हुए श्री गांधीने कहा कि जिस व्यक्तिने जीवनका अधिकांश भाग जनताको सेवामें लगा दिया हो उसकी वर्षगाँठके अवसरपर आयोजित जलसेमें सम्मिलित होने में मुझे बहुत हर्ष हो रहा है। इस उत्सव के मनानेमें हमारा गर्व करना उचित ही है। मेरी श्रीमती बेसेंटसे प्रथम मुलाकात इंग्लैंडमें १८८९ में हुई थी। उनसे मेरा परिचय इंग्लैंडके ब्लैक्ट्स्की लॉजमें कराया गया था। मैंने उन्हें भिन्न-भिन्न प्रश्नोंके उत्तर देते हुए तथा अपना नास्तिकवाद त्यागने और ब्रह्मविद्या अपनानेके कारण समझाते हुए देखा था। समस्त आरोपोंका उत्तर दे चुकनेके बाद उन्होंने कहा था कि मुझे सन्तोष तभी होगा जब मेरी मृत्युके पश्चात् कहा जायेगा कि मैं सत्यके लिए जीवित रही तथा सत्यके हेतु ही मरी। जब मैं दक्षिण आफ्रिका गया तब में अनेक थियोसॉफी मतावलम्बियोंके सम्पर्क में आया, और उन्होंसे मुझे श्रीमती बेसेंटके कार्यके विषयमें जानकारी प्राप्त हुई थी तथा उनसे वह जानकारी भी सुलभ हुई जो श्रीमती बेसेंट द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में नहीं थी। इन सब बातोंसे मुझे विश्वास हो गया कि श्रीमती बेसेंट प्रशंसा और निन्दाकी चिन्ता न करते हुए आत्म-विश्वासके अनुसार अपना काम किया करती हैं।

सत्याग्रह आन्दोलनकी चर्चा करते हुए श्री गांधीने श्रोताओंको बताया कि किस प्रकार श्रीमती बेसेंट अपने विश्वासोंपर दृढ़ रहीं, इसी कारण उन्हें यकीन हो गया था कि सत्याग्रहमें कुछ अपनी त्रुटियाँ हैं तथा आम जनता उसके महत्त्वको पूरा-पूरा नहीं पहचान सकती है। यह एक दूसरा उदाहरण है जिससे प्रकट होता है कि वे अपनी अन्तरात्मामें बैठी हुई बातोंकी परवाह अधिक करती हैं। उन्होंने इस बातकी चिन्ता कभी नहीं की कि जनता उनके विश्वासोंको पसन्द करती है या नहीं।

तदुपरान्त श्री गांधीने उनके कार्यकी चर्चा करते हुए कहा कि मैंने श्रीमती बेसेंटको कभी अवकाशमें समय बिताते नहीं पाया बल्कि उन्हें सदैव जनताकी भलाईके लिए परिश्रम करते ही देखा है - यहाँतक कि रेलमें सफर करते समय भी। यद्यपि आज वे ७३ वर्षकी हैं तथापि उनको इतनी बड़ी उम्र में ऐसे उत्साह और इतनी ईमानदारीसे काम करते हुए देखकर मुझे खुशी होती है - जैसा हम और आपमें कोई नहीं कर सकता है। मेरी रायमें श्रीमती बेसेंटने भारतकी जो अपार

  1. श्रीमती एनी बेसेंटकी ७३ वीं वर्षगाँठ मनानेके लिए एक्सेक्सियर थियेटर में हुई इस सार्वजनिक सभाकी अध्यक्षता गांधीजीने की थी। इसकी रिपोर्ट अक्तूबर ४, ९९११ के न्यू इंडिया में छपी थी।