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सन्देश : एनी बेसेंट के जन्म-दिवसपर

सेवा की है वह बड़ी मूल्यवान है। उन्होंने अपना समस्त जीवन तथा अपना सब कुछ भारतके कल्याणके लिए अर्पण कर दिया है।

श्रीमती बेसेंट के साथ अपने मौजूदा राजनीतिक मतभेदोंका जिक्र करते हुए श्री गांधीने कहा कि मुझे प्रसन्नता है कि वे लोग भी जो उनसे मतभेद रखते हैं, इस बातको प्रमाणित करनेमें गर्व अनुभव करते हैं कि श्रीमती बेसेंट इंग्लैंडमें भारतकी बड़ी सेवा कर रही हैं। भारतीयोंके पक्षका समर्थन करनेके परिणामस्वरूप श्रीमती बेसेंटको दोनों ही प्रकारकी - शारीरिक और मानसिक वेदना सहनी पड़ी थी। यूरोपीय लोग उनसे मिलना-जुलना नापसन्द करते थे। लेकिन मेरे खयालसे श्रीमती बेसेंट द्वारा की गई महानतम सेवा होमरूल आन्दोलनका श्रीगणेश है, जो भारत में उनके द्वारा की गई सेवाओंका मूर्त स्मारक है। यह केवल उन्हीं की सूझ-बूझ थी जिसके फलस्वरूप यह आन्दोलन खड़ा हुआ और अब वह भारतके कोने-कोने में फैल गया है, यहाँतक कि जिस किसी गाँवमें भी में गया मैंने देखा कि लोगोंने भारतके लिए होमरूल प्राप्त करनेको आवश्यकताको [पूर्णरूपसे] समझ लिया है।

अन्तमें श्री गांधीने कहा कि श्रीमती बेसेंटने होमरूलके मन्त्रको भारतीयोंके हृदयपटलपर अंकित कर दिया है। भगवान् से मेरी यही हार्दिक प्रार्थना है कि वे भारतकी भलाई के लिए दीर्घजीवी हों और अपने जीवन कालमें भारतको होमरूल दिलाने में समर्थ हों जिससे भारतमें चारों ओर सन्तोषका साम्राज्य हो तथा फिरसे भारत अपना प्राचीन गौरव प्राप्त कर सके।

श्री बेसेंटके कार्यकी दो और वक्ताओं द्वारा प्रशंसा की जानके बाद गांधीजीने श्रोताओंसे श्रीमती बेसेंटके पास उचित सन्देश भेजनेकी अनुमति माँगी और वह उन्हें मिल गई।

[अंग्रेजीसे]

बॉम्बे क्रॉनिकल, २-१०-१९१९

१२१. सन्देश : एनी बेसेंटके जन्म-दिवसपर[१]

बम्बई
अक्तूबर १, १९१९

श्रीमती बेसेंटकी वर्षगाँठके अवसरपर जो अनेक प्रशंसात्मक लेख 'न्यू इंडिया' के सम्पादकको भेजे जायेंगे उनमें मेरा भी एक लेख हो, इस अनुरोधके उत्तर में प्रसन्नतापूर्वक अपनी विनम्र श्रद्धांजलि भेज रहा हूँ। १८८९ में पहली बार में श्रीमती बेसेंटसे भेंट करने गया था। उन दिनों में नवयुवक ही था और लन्दनमें विद्योपार्जन कर रहा था। अपनी श्रद्धा व्यक्त करनेका यह सुयोग मुझे अपने दो अंग्रेज मित्रोंके सौजन्यसे प्राप्त

  1. सम्भवतः यह वही सन्देश है जिसका उल्लेख गांधीजीने श्रीमती बेसेंटके ७३ वें जन्म-दिवसपर दिये गये अपने भाषण में किया था। देखिए पिछला शीर्षक।