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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हुआ था जो उन दिनों थियोसॉफीका बड़े उत्साहसे अध्ययन कर रहे थे। एनी बेसेंट कुछ दिन पूर्व ही थियोसॉफिकल सोसाइटी में शामिल हुई थीं। उस समय मेरे मनपर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा। वास्तवमें में प्रभावित होनेके खयालसे नहीं, केवल कौतूहलवश गया था कि देखूं जो महिला पहले कभी नास्तिक थी, कैसी दिखती है। मेरे मित्रोंने मुझसे कह रखा था कि आज संसारकी महिला वक्ताओं में वे सबसे श्रेष्ठ हैं और मैंने यह भी सुन रखा था कि मैडम ब्लैक्ट्स्कीको श्रीमती बेसेंटके उनकी संस्थामें शामिल होनेकी बड़ी खुशी है। परन्तु फिर कुछ ही देर बाद मैं क्वीन्स हॉल गया, उस समय मेरा उद्देश्य उनको देखना नहीं बल्कि उनका व्याख्यान सुनना था। अपने बारेमें असंबद्धताके आरोपका उत्तर देतेसमय उन्होंने जो भाव व्यक्त किये थे वे मुझे कभी विस्मृत नहीं हुए। अपना शानदार भाषण, जिसे जनताने मन्त्रमुग्ध होकर सुना था, समाप्त करते हुए उन्होंने अन्तमें कहा कि यदि मेरी कब्रपर केवल इतना ही लिख दिया जाये कि यह महिला सत्यके लिए जीवित रही और सत्यके लिए मरी तो मुझे पूर्ण संतोष हो जायेगा। मेरे मन में अपने वाल्यकाल से ही सत्यके लिए स्वभावगत आकर्षण रहा है। जिस नितान्त हार्दिकताके साथ उन्होंने ये शब्द कहे थे, मुझे प्रतीत हुआ कि उस हार्दिकताने मेरे चित्तको हर लिया और उसी दिनसे में उनकी गति-विवियोंको दिलचस्पीके साथ देखता रहा हूँ। और उनकी असीम कार्यशक्ति, उनकी महान् संगठन-क्षमता और हाथमें लिए गये कामके प्रति उनकी लगनके लिए मेरे मनमें सदैव प्रशंसा भाव रहा है। कामके तरीकेके बारेमें उनके साथ मेरा तीव्र मतभेद जरूर है। और कभी-कभी मुझे इस बातपर सन्ताप भी हुआ है कि उन्होंने अपनी १८८८ की बलवती स्वतन्त्र प्रकृति और सत्यकी साहसपूर्ण खोज तथा सत्यका हर मूल्यपर अनुसरण आदि गुण खो दिये हैं। परन्तु अपनी इन सब शंकाओंके रहते हुए भी मैं अपने इस विश्वाससे कभी नहीं डिगा कि उनमें भारतके प्रति अगाध प्रेम है। भारतको ऐसी महिलाका मिल जाना जिसने अपनी समस्त प्रतिभा भारतको सच्चे दिलसे अर्पित कर दी हो - जिसका दावा भारतमें जन्मे बहुत ही कम पुरुष और स्त्रियों कर सकती हैं - कोई कम लाभ नहीं है। मेरे मनमें इस बातके बारेमें जरा भी सन्देह नहीं है कि होमरूलको उन्होंने जितना लोकप्रिय बना दिया है उतना अन्य किसी व्यक्तिने नहीं बनाया। ईश्वर करे वे दीर्घजीवी हों और जिस देशको उन्होंने अपना देश बना लिया है उसकी सेवामें रत रहें।

गांधीजी द्वारा संशोधित हस्तलिखित अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ६९०३) की फोटो-नकलसे।