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१२६. मजदूरोंपर जुर्माने

सरकारके निश्चयके अनुसार अहमदाबादको अप्रैलके दंगोंके सिलसिले में लगभग नौ लाख रुपये बतौर जुर्माने के देने होंगे। यह जुर्माना ब्रिटिश पुलिस अधिनियमके[१] उसी खण्डके अन्तर्गत लगाया गया है जिस खण्डके अन्तर्गत नडियादमें लगाया गया है। कोई ऐसा कानून जो किसी सरकारको मनमाना जुर्माना थोपनेकी अनुमति देता है, खराब कानून है। ऐसे सभी कानून जो सरकारको कानूनके अंकुशसे मुक्त कर देते हैं और जिनकी बदौलत सरकार प्रजाकी सलाह लिये बिना या किसी वैधरूपसे निर्मित न्यायाधिकरणकी अनुमति बिना प्रजाके प्रति मनचाही कर गुजरती है, खराब हैं। जहाँ प्रबुद्ध और उदार सरकारें हैं अथवा जहाँ जनता अपनी स्वतन्त्रताके विषय में जागरूक हैं वहाँ ऐसे कानूनोंको सहन नहीं किया जाना चाहिए। परन्तु यहाँ मैं कानूनके दोषोंपर विचार प्रकट करना नहीं चाहता। इस अवसरपर मेरा अभिप्राय केवल इतना ही है कि मैं उस खराब कानूनके असामयिक, विवेकहीन और लगभग तानाशाही ढंगसे प्रयुक्त किये जानेकी ओर जनताका ध्यान आकर्षित करूँ। यह सिद्धान्त निर्विवाद है कि जनताकी भीड़ने जानोमालको जो भारी क्षति पहुँचाई है उसका हर्जाना भी वही अदा करे। परन्तु उस सिद्धान्तको स्वीकार करनेका यह अर्थ नहीं है और न हो सकता है कि तानाशाही शासनप्रणालीको स्वीकार किया जाये। अहमदाबाद के मिल मजदूरोंके मामलेमें १,७६,००० रुपये का जुर्माना तय किया गया है। यह जुर्माना सितम्बर १९१९ में नगरपालिकाकी सीमाके अन्दर मिलोंमें काम करनेवाले सभी मजदूरोंसे वसूल किया जायेगा। जरा गौर कीजिए कि दंगे गत अप्रैलमें हुए थे। यह बात किसीसे छिपी नहीं है कि मिलोंमें अब सब मजदूर वही नहीं हैं जो पहले थे। और नये मजदूरोंकी भरती होती ही रहती है। उन मजदूरोंको जिन्होंने दंगों के बाद मिलोंमें काम करना शुरू किया है और जिनका उन दंगोंके साथ कोई सम्बन्ध नहीं रहा है, जुर्माना देने को विवश क्यों किया जाता है? मिलोंमें काम करनेवाली स्त्रियाँ और बच्चे जिनकी संख्या काफी बड़ी है - जुर्माना क्यों अदा करें? सम्भवतः मिलोंमें ६० हजार मजदूर काम करते हैं। क्या उनपर लगभग २ लाख रुपयेका जुर्माना करना मुनासिब है?

जुर्माने की रकम वसूल करनेका तरीका और इसका जो वक्त चुना गया है। वह और भी ज्यादा कष्टप्रद है। यह हुक्म २६ सितम्बर, १९१९ को जारी किया गया था। उसी दिन निम्नलिखित पत्र मिल मालिकोंके नाम भेजा गया था:

अहमदाबाद के कलक्टर चाहते हैं कि...मिलके एजेंट लोग सोमवार २९ सितम्बर, १९१९ को दिनके ३ बजेसे पहले मजदूरोंके नामसे जमानतकी रकमके

  1. सन् १९१५ के अधिनियम ३ द्वारा संशोधित सन् १८९० का बम्बई जिला पुलिस अधिनियम ४