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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खाते में पड़ी रकममें से उतनी निकालकर अहमदाबाद के हुजूर डिप्टी कलक्टरके पास जमा करवा दें जितनी सितम्बर मासमें नौकर रखे गये मजदूरोंकी एक सप्ताह की मजदूरी होती है।

कानून में इस बातकी सम्भावना रखी गई है कि जिन लोगोंको इस प्रकारके हुक्मोंसे क्षति पहुँची है वे उन हुक्मोंके खिलाफ सरकारके यहाँ अपील दायर कर सकते हैं। यह हुक्म मिलोंमें काम करनेवाले मजदूरोंपर जारी नहीं किया गया है। उन्हें अपील दायर करने का मौका नहीं दिया गया है और न जुर्माने खुद अदा करनेका अधि- कार ही दिया गया है। जमानतकी रकम - वह रकम जिसे मजदूरोंके कमाये हुए धनमें से काटकर मिल मालिक अपने पास रखे रहता है - सम्बन्धित मजदूरोंको सूचित किये बिना अथवा उनकी सहमति लिए बिना सीधे जुर्मानेकी पूर्ति में वसूल कर ली गई है। मजदूरोंके साथ इस प्रकारका बरताव करने से उनका अपमान होता है, वे अनावश्यक रूपसे क्षुब्ध होते हैं और उन्हें असहाय अवस्थामें रहना पड़ता है। उनके साथ इस प्रकारके व्यवहारसे प्रकट होता है कि उन्हें जिम्मेदार मनुष्य नहीं माना जाता।

यह तो उसी प्रकार हुआ जैसे किसीके मवेशी अगर किसीकी जमीनमें घुस जायें तो उनसे नहीं पूछा जाता और मालिकोंसे जुर्मानेकी रकम वसूल कर ली जाती है। अन्तर इतना ही है कि मजदूर लोग मवेशियोंकी भाँति मूक नहीं होते और मवेशियोंकी तरह जुर्मानोंका बोझ मालिकोंपर न पड़कर अन्ततोगत्वा उन्हींके कंधोंपर आ पड़ता है। आश्चर्यकी बात है कि मिल मालिक सरासर गलत ढंगकी इस कार्रवाई में खुशी से भाग लें - मुझे मालूम हुआ है कि वे ऐसा कर रहे हैं।

जो जानकारी मुझे प्राप्त हुई है उससे विदित होता है कि उपर्युक्त भुगतान के एवज में मिल-मालिक अपने मजदूरोंको शीघ्र ही मिलनेवाली मजदूरी में से उतनी ही रकम काट लेनेका इरादा रखते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि यह १ लाख ७६ हजारकी बड़ी रकम ऐसे समयपर वसूल की जानेवाली है जिन दिनों हिन्दुओं और मुसलमानों दोनोंके त्योहार हैं। इस कदमके अनौचित्यपर किसीको भी शंका नहीं हो सकती। इसमें शक नहीं कि त्योहार और वसूलीका समय एक ही हो; यह एक संयोगकी बात है और यह जान-बूझकर नहीं किया है। परन्तु भोला-भाला मजदूर तो यही सोचेगा कि त्योहारका मौका जान-बूझकर उसकी भावनाओंको ठेस पहुँचानेके इरादेसे ही चुना गया है।

अहमदाबाद के कलक्टर एक भद्र व्यक्ति हैं। उनके व्यवहारसे जिलेके निवासियोंको पूरा सन्तोष है। जब लोगोंमें जोश उमड़ा हुआ था तब उन्होंने सराहनीय धैर्यसे काम लिया था। वे एक बहुत ही उदारमना व्यक्ति हैं। इसलिए उनके कामोंकी आलोचना करते हुए मुझे विशेष दुःख होता है, और में यह कहे बिना नहीं रह सकता कि यदि यह अधिकारी राष्ट्रीय जीवनके लगभग प्रत्येक स्थलपर मनमानी कार्यपद्धति सम्भव बनानेवाली शासनप्रणालीका गुलाम न होता तो वह अपने कृत्योंकी अन्यायपूर्णता और विवेकहीनतापर अवश्य दुखी होता। अब यह मामला परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदय के सामने है, और मैं यह आशा करनेका साहस करता हूँ कि अहमदाबादके मिल-