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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बलवती होती है। इसलिए मैं लखनऊ-सम्मेलन द्वारा पास किये गये प्रस्तावका स्वागत करता हूँ। प्रार्थना अन्तरात्माकी उत्कट इच्छाको प्रकट करती है और उपवास प्रभावशालिनी प्रार्थनाके लिए अन्तरात्माको मुक्त कर देता है। मेरी सम्मतिमें राष्ट्रीय उपवास और राष्ट्र द्वारा की जानेवाली ईश्वर-प्रार्थनाके साथ-साथ कारोबार भी बन्द रखना चाहिए। इसलिए मैं निःसंकोच होकर उस दिन कामकाज बन्द रखनेकी सलाह दे रहा हूँ, बशर्ते कि वह शान्तिके साथ और गम्भीरतापूर्वक सम्पादित हो और बशर्ते कि वह पूर्णतः स्वेच्छाप्रेरित हो। जिन लोगोंकी आवश्यकता अनिवार्य कामोंके लिए हो जैसे अस्पतालमें सेवा-शुश्रूषा, स्वच्छता कायम रखना, जहाजोंसे माल उतारना, उनसे काम बन्द करनेको न कहना चाहिए। मेरा यह भी सुझाव है कि उस दिन जुलूस न निकाले जायें और सभाएँ न की जायें। लोगोंको घरोंमें बन्द रहना चाहिए और केवल प्रार्थनामें ही दिन गुजारना चाहिए।

यह कहनेकी तो जरूरत ही नहीं है कि हिन्दुओं और अन्य मतावलम्बियोंका यह कर्त्तव्य है कि वे अपने मुसलमान भाइयोंका साथ दें। हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करनेका बिलकुल निश्चित और सबसे सरल मार्ग यही है। मित्रकी सहायता करना मित्रता करनेवालोंका अधिकार है और संकटका अवसर वह कसौटी है जिसपर मित्रता कसी जाती है। हिन्दू लोग लाखोंकी संख्यामें मुसलमानोंको दिखा दें कि वे दुःखमें उनके साथ हैं।

मैं सरकारसे आदरपूर्वक अनुरोध करना चाहता हूँ कि वह जनताके हितोंको अपने हित समझे और जनताकी भावनाओंके इस शान्तिपूर्ण प्रदर्शनको प्रोत्साहित करे तथा उसे व्यवस्थित रूप दे। सरकारको चाहिए कि लोगोंको यह न समझने दे कि वह उनके रास्ते में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपसे रोड़े अटकाना चाहती है।

मैं नई पीढ़ीके लोगोंसे अनुरोध करूँगा कि उपवास और प्रार्थनाको सन्देह अथवा अविश्वासकी दृष्टिसे न देखें। संसारके बड़ेसे-बड़े शिक्षकों और उपदेशकोंने उपवास और प्रार्थना द्वारा मानव-जातिके कल्याणके निमित्त असाधारण शक्तियाँ उपलब्ध की हैं। और अपने दृष्टिकोणमें उदारता प्राप्त की है। इस आत्म निर्णयका बहुत-सा भाग इस कारण व्यर्थ चला जाया करता है कि उपवास और प्रार्थनासे हृदयका नाता न जोड़कर लोग प्रायः उसका उपयोग नाटकीय प्रभाव उत्पन्न करनेके निमित्त करते हैं। इसलिए मैं इस आन्दोलनसे संबद्ध संस्थाओंको चेतावनी दे रहा हूँ कि वे इस प्रकारकी आत्मघातक चालबाजी कदापि न करें। उन्हें या तो अपनी साधनामें सजीव आस्था रखनी चाहिए या उसका परित्याग कर देना चाहिए। अब हमारे लाखों देशवासी हमारी ओर आकर्षित होने लगे हैं। यदि हम उन्हें जान-बूझकर गलत रास्तेपर ले जायेंगे तो हम उनकी बददुआओंके पात्र बनेंगे। हम सबमें - चाहे हिन्दू हों चाहे मुसलमान - धार्मिक भावना मौजूद है। धर्मके साथ खिलवाड़ करके हम उसकी जड़ खोखली न करें।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ४-१०-१९१९