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१३०. पत्र : जी० ई० चैटफील्डको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
अक्तूबर ४, १९१९

प्रिय श्री चैटफील्ड,

'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' के सम्बन्धमें जमानत माँगनेके आपके प्रस्तावपर सर्वश्री बैंकर और देसाईसे हुई सारी बातचीत उन्होंने मुझे बताई। मैं जानता हूँ कि आप जो निर्णय देंगे उसमें आपकी कर्त्तव्य भावनाकी ही प्रेरणा रहेगी। इसके अलावा मुझे आपसे किसी तरहकी खास छूट माँगनेकी कोई इच्छा भी नहीं है। तथापि मैं एक बात आपके सामने अवश्य रखना चाहूँगा। लोगोंका खयाल है, और मैं तो समझता हूँ, सरकार भी ऐसा ही मानती है कि मेरे कामके पीछे सरकारके प्रति शत्रुताका कोई भाव नहीं हुआ करता, और अगर मुझे सरकारके अनेक कार्योंका विरोध करना पड़ता है तो उसका कारण यह है कि मैं जिस बातको गलत मानता हूँ उसमें सुधार करवाना चाहता हूँ। इसलिए जिन पत्रोंकी नीतिका नियंत्रण पूरी तरह मेरे हाथमें है, यदि उनसे कोई जमानत ली गई तो उससे जनतामें विक्षोभ उत्पन्न होगा और उससे सरकारकी प्रतिष्ठाको भी कुछ-न-कुछ आँच आयेगी। यदि मेरे उक्त विचारोंसे आप सहमत हों तो मैं आपसे अनुरोध करूँगा कि किसी तरहकी जमानत न माँगें और अगर आपको यह आवश्यक ही जान पड़े तो जैसा में कह चुका हूँ मुझे इससे कोई गलतफहमी नहीं होगी। उस हालत में इतना अवश्य चाहता हूँ कि यदि सम्भव हो तो आप इसके कारण जरूर स्पष्ट कर दें। यहाँ इतना और कह दूं कि अभी हाल में जब 'नवजीवन' से जमानत माँगी गई[१] थी मैंने परमश्रेष्ठको भी एक पत्रमें ऐसा ही कुछ लिखा था और वह बात अवतक विचाराधीन है।

हृदयसे आपका,

हस्तलिखित मूल अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ६९२५) की फोटो-नकलसे।

  1. देखिए "टिप्पणियाँ ", ५-१०-१९१९।