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१३१. पत्र : एन० पी० कॉवीको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
अक्तूबर ४, १९१९

प्रिय श्री कॉवी,

पिछले बुधवारको मैंने अहमदाबादके मिल मजदूरोंसे एक लाख छिहत्तर हजार रुपयेकी वसूलीके सम्बन्धमें आपको एक तार[१] दिया था। तारमैं मैंने बताया था कि मैं परमश्रेष्ठके विचारार्थ उक्त तावानकी वसूली और साथ ही जिस वर्गके मजदूरोंसे यह रकम वसूल की जा रही है या इसे वसूल किया जाना है उसपर ऐसा भारी बोझ डालनेके औचित्य के खिलाफ अपनी दलीलें भेजूंगा। ऐसा लगता हैं कि मजदूरोंको अहमदाबादके अमीरसे अमीर नागरिकोंके बराबर मान लिया गया है; और इन अमीरोंके पास तो रकम एकत्र करके अदा करनेके लिए कुछ समय है, मजदूरोंसे कहा गया है कि वे १,७६,००० रुपयेकी यह भारी रकम (उनके पास) तुरन्त जमा कर दें। आशा है, यह जवाब नहीं मिलेगा कि मिल मालिकोंके पास मजदूरोंकी जमानतकी रकममें से अदायगी पा लेनेपर सरकारका कर्त्तव्य समाप्त हो जाता है और उसके बाद मिल-मालिक चाहे जिस तरह उसे वसूल करें।

सभी जानते हैं कि मजदूर तो हमेशा आते-जाते रहते हैं। इसलिए जरूरी नहीं है कि जो लोग अप्रैलमें मजदूरीके लिए आते थे वे सितम्बरमें भी आ रहे हों। इसलिए जिन कुछ मजदूरोंके नाम मिल मालिकोंके खातों में सितम्बर महीने में पाये जायें उनसे इस तरहकी वसूली करना कहाँका न्याय है, यह समझमें नहीं आता।

मेरी नम्र सम्मतिमें तो न्याय यह कहता है कि जो तावान वसूल किया जाना हो वह उन मजदूरोंसे किया जाये जिनके नाम दस अप्रैलको विभिन्न मिल मालिकोंके खातों में हों। मेरा यह विचार भी है कि मिलमें काम करनेवाली स्त्रियों और बच्चोंसे उसे वसूल करना भी अन्याय है। अतः मेरा निवेदन है कि एक तो जितनी रकम वसूल की जानी है उसमें कमीकी जाये; दूसरे जिनके नाम १० अप्रैलको मिलोंमें मजदूरी करनेवालोंकी सूचीमें नहीं हैं उन्हें तथा स्त्रियों और अठारह सालसे कम उम्र के बच्चोंको भी उक्त अदायगीसे बरी कर दिया जाये; और जैसा कि मैंने अपने तारमें निवेदन किया था, वसूली पर्व-त्योहारोंके इस चालू महीने में न की जाये; बल्कि इसकी अदायगीके लिए काफी समय भी दिया जाये ताकि मजदूर किसी बड़ी परेशानीके बिना उसे अदा कर सकें।

हृदय से आपका,

हस्तलिखित मूल अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ६९२६) फोटो- नकलसे।

  1. देखिए "तार: बम्बईके गवर्नर के निजी सचिवको", अक्तूबर १-१०-१९१९।