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आगामी गुजरात राजनीतिक परिषद्

जाते हैं। हम कहना यह चाहते हैं कि बड़ोंको मान देनेकी हमारी प्रथा अमूल्य है और उसका त्याग करना देशके लिए हानिकारक है। हमारा किसी विषयपर किसीके साथ कितना ही मतभेद क्यों न हो, हम इस मतभेदको विनयपूर्वक प्रकट कर सकते हैं, लेकिन [उसके प्रति] अपनी सम्मान-भावनाको जरा भी कम नहीं कर सकते। इसलिए हम स्वागत समितिके इस निर्णयका स्वागत एक अनुकरणीय दृष्टान्तके रूपमें करते हैं तथा आदरणीय पारेख महोदयको गुजरातकी ओरसे उचित मान मिलने और उनके द्वारा की गई सेवाओं की कद्र की जानेपर हम उन्हें भी बधाई देते हैं।

परिषद् के लिए योजना

हम इस अवसरपर स्वागत समितिको कुछ सुझाव देना चाहते हैं। हमारा अनुभव है कि हम लोग परिषदोंके दौरान कुछ अनावश्यक खर्च कर दिया करते हैं। इस सम्बन्धमें हमें प्रोफेसर पैट्रिक गेडिस[१] द्वारा प्रकट किये गये कुछ अमूल्य उद्गार मिले हैं और हमारा विचार उन्हें फिर कभी पाठकोंके सम्मुख रखनेका है। हम हमेशा बहुतसे मामलों में बिना विचारे पश्चिमका अनुकरण करते हैं और देशको बहुत नुकसान पहुँचाते हैं। वस्तुतः देखा जाये तो पश्चिमके सम्बन्धमें हमारी जानकारी बहुत कम है। पश्चिम अर्थात् इंग्लैंड, अमरीका, फ्रांस और जर्मनी, ये देश बहुत सम्पन्न हैं, इनके साथ हम कोई मुकाबला नहीं कर सकते। वे जिस तरह खर्च करते हैं, वैसा करनेमें हिन्दुस्तान किसी तरह भी समर्थ नहीं है। इसलिए हमें भारतकी आबहवा, उसकी आर्थिक स्थिति और उसके रीति-रिवाजोंका विचार करके ही परिषदोंकी योजना बनानी चाहिए। इस दृष्टिसे विचार करनेपर मण्डपों और असंख्य ध्वज पताकाओंपर हजारों रुपया खर्च करने की बात तो हमें कदापि शोभा नहीं दे सकती। जहाँ स्वच्छता और सुचारु व्यवस्था हो वहाँ सहज ही सौन्दर्य आ जाता है। यदि स्वच्छ खुला मैदान हो और उसमें ठीक स्थलोंपर पर्याप्त वृक्ष हों तो इससे अच्छे किसी मण्डपकी कल्पना हम नहीं कर सकते। हम अपनी परिषदोंमें लाखों व्यक्तियोंकी उपस्थितिकी अपेक्षा करते हैं; न करते हों तो करनी चाहिए। लाखों व्यक्तियोंके इकट्ठे होनेकी बात हो तो विलायत में भी मण्डप नहीं बनाए जाते। प्रमुख और इने-गिने नेताओंके लिए मध्यमें एक मंच बनाकर जन-समाजके लिए उसके आसपास जमीनपर बैठनेकी व्यवस्था कर दी जाती है। [बहुत] लोग थोड़ी-सी जगहमें आ सकते हैं और असंख्य व्यक्ति मंचसे दिये जानेवाले भाषणोंको सुन सकते हैं; ऐसी व्यवस्थापर बहुत कम व्यय होता है। हजारों व्यक्ति लम्बे समयतक रोके नहीं जा सकते इसलिए परिषद्के मुख्य [निर्णय] कार्य समिति में ही हो जाने चाहिए। वहाँ निश्चित किये गये प्रस्तावों व विचारोंको, कमसे कम शब्दोंमें, लोग समझ सकें ऐसी सरल और आडम्बररहित भाषामें, प्रकट करना चाहिए। इस प्रकार हम सवेरे सातसे नौ और शामको पाँचसे सात बजेतक इकट्ठे होकर परिषद्का कार्य पूरा करके समितिके लिए ज्यादा समय बचा सकते हैं। यदि ऐसे समय भी धूप लगनेकी आशंका हो तो बत्तियाँ लाकर शामके छः बजेसे नौ

  1. देखिए खण्ड १४, पृष्ठ ३१३।