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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बजेतक अथवा इससे भी अधिक देरतक बैठकर बहुत आसानीसे परिषद् के कामको निपटा सकते हैं।

परिषद् में प्रदर्शनी

हम एक और सुझाव भी पेश करने की अनुमति चाहते हैं। श्री वामनराव मुकादमने[१] परिषद् के अन्तर्गत स्वदेशी परिषद् भी किये जानेका सुझाव दिया है। इसमें संशोधन करके हम स्वदेशी प्रदर्शनी किये जानेका सुझाव देते हैं। इस प्रदर्शनीका आयोजन हम अपने अतिरिक्त समयमें सहज ही कर सकते हैं, ऐसी हमारी मान्यता है। अभी कुछ ही दिन पूर्व हमने अमरेलीमें एक प्रदर्शनीका आयोजन किया था और हमें बताया गया कि इसमें न केवल सब कुछ ठीक हुआ बल्कि हजारों स्त्री-पुरुष बड़े उत्साहके साथ इसे देखनेके लिए आये। हम आशा करते हैं कि स्वागत-मण्डल और सूरतके साहसी नागरिक इन सुझावोंपर अमल करनेका भरसक प्रयत्न करेंगे।

[गुजरातीसे]

नवजीवन ५-१०-१९१९

१३४. जगत् का पिता - २

पिछले अंकमें हम किसानों की स्थितिके सम्बन्धमें थोड़ा विचार कर चुके हैं। अब इसपर विचार करना है कि यह स्थिति कैसे सुधर सकती है।

श्री लायनेल कर्टिसने[२], जो लखनऊ की कांग्रेसमें सामने आये, एक स्थानपर भारतके गाँवोंका हूबहू चित्रण किया है। आपका कहना है कि भारतके गाँव घूरेके बने टीलोंपर बसे होते हैं। उनके झोंपड़े टूटे-फूटे और निवासी शक्तिहीन होते हैं। जहाँ-तहाँ मन्दिर दिखाई देते हैं। इन गांवोंकी सफाई नहीं होती। रास्ते खूब धूल-धूसरित होते हैं। सामान्य तौरपर देखनेसे ऐसा लगता है मानो गाँवकी व्यवस्थाके लिए कोई भी उत्तरदायी न हो।

इस वर्णन में बहुत अतिशयोक्ति नहीं है; बल्कि कुछ हदतक इसमें और वृद्धि की जा सकती है। सुव्यवस्थित गाँवकी रचना कुछ नियमोंके अनुसार होनी चाहिए। गांवकी गलियाँ चाहे जैसी होनेके बजाय एक निश्चित नक्शेके अनुरूप होनी चाहिए। और हिन्दुस्तान में तो, जहाँ करोड़ों व्यक्ति नंगे पांव चलते हैं, रास्ते इतने साफ होने चाहिए कि उनपर चलने अथवा सोनेमें भी किसीको कोई हिचकिचाहट न हो। गलियाँ पक्की हों और वहाँ पानीकी निकासीके लिए नालियाँ भी हों। मन्दिर और मस्जिद स्वच्छ और हमेशा ऐसे लगने चाहिए मानो अभी बने हों और उनमें जानेवाले व्यक्तिको वहाँ शान्ति एवं पवित्रताका आभास मिलना चाहिए। गाँवमें तथा उसके आसपास

  1. राजनैतिक और सामाजिक कार्यकर्ता, पंचमहाल जिला, गुजरात।
  2. लायनेल कर्टिस; जोहानिसबर्ग के टाउन क्लार्क, १९०२-३; ट्रान्सवालमें नागरिक मामलोंके सहायक उपनिवेश सचिव, १९०३.६; सदस्य ट्रान्सवाल विधान परिषद्; देखिए खण्ड ८, पृष्ट १०।