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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

देशको अवगत करा सकेंगे। यह प्रयोग कैसे शुरू किया जा सकता है, इस सम्बन्धमें मैं कुछ अनुभव 'नवजीवन' के आगामी अंकोंमें पाठकोंके सामने पेश करूँगा। लेकिन जो लोग इस बातके महत्त्वको समझ गये हैं, मुझे उम्मीद है कि वे एक सप्ताहकी भी राह देखे बिना अपना कार्य आरम्भ कर देंगे।

[गुजरातीसे]

नवजीवन ५-१०-१९१९

१३५. टिप्पणियाँ

श्रीमती बेसेंट चिरायु हों

श्रीमती बेसेंटने गत बुधवारको जीवनके ७३ वें वर्षमें प्रवेश किया। यह महान् महिला अभी अनेक वर्षोंतक हमारे बीच इस भूमिपर बनी रहे - हजारों भारतवासियोंने बुधवारको ईश्वरसे ऐसी प्रार्थना की होगी। ७३ वर्षकी आयुमें श्रीमती बेसेंट में हमें जिस लगन और अध्यवसायके दर्शन होते है वैसी लगन और अध्यवसाय हम लोगों में ३३ वर्षकी अवस्थामें भी कदाचित् ही दिखाई पड़ता है। यह निर्विवाद है कि श्रीमती बेसेंटने हिन्दुस्तानकी जो सेवा की है वह इस देशके इतिहासमें सदा स्मरणीय रहेगी। 'होमरूल' शब्दको हिन्दुस्तानने अंगीकार कर लिया - यह इस भली महिलाका ही प्रताप है। स्थान-स्थानपर होमरूल लीगकी जो स्थापना की गई वह भी इसी महिलाकी हिम्मतके कारण सम्भव हो सका। हिन्दुस्तानकी राजनैतिक शिक्षामें इन्होंने भारी हिस्सा लिया है। श्रीमती बेसेंट आजकल इंग्लैंडमें भी हिन्दुस्तानको 'होमरूल' प्रदान किये जानेके सम्बन्धमें भारी आन्दोलन कर रही हैं। शक्तिभर अपने समस्त साधनोंका उपयोग श्रीमती बेसेंट 'होमरूल' के निमित्त कर रही है। श्रीमती बेसेंटके विचारों, उनकी कार्यपद्धतिसे भले ही किसीका मतभेद हो, लेकिन हिन्दुस्तानके प्रति उनकी सेवाके सम्बन्धमें किसी मतभेदका होना सम्भव नहीं है। संसार-भरकी स्त्रियोंमें श्रीमती बेसेंट अच्छेसे अच्छे वक्ताके रूपमें मानी जाती हैं, इतना ही नहीं बहुत कम पुरुष उनकी वक्तृत्व शक्तिकी होड़ कर पायेंगे। उनकी कलममें भी बहुत बल है। बहुत वर्षोंसे यह महिला अपनी समस्त शक्तिका उपयोग हिन्दुस्तानके निमित्त कर रही है। उसके लिए भारत उनका सदैव ऋणी रहेगा। इसलिए "श्रीमती बेसेंट चिरायु हों" यह प्रार्थना सही मानेमें तो हमारे स्वार्थकी द्योतक है ।

'नवजीवन' पर घटाएँ

जिस तरह भारतमें धीरे-धीरे नवजीवनका संचार और प्रसार होता है और उसके संचार और प्रसारके मार्ग में अनेक विघ्न-बाधाएँ भी आती हैं, ठीक यही बात 'नवजीवन' पत्रपर भी लागू होती है। 'नवजीवन' को आन्तरिक और बाह्य दोनों तरह की आपत्तियों का सामना करना पड़ रहा है। बाह्य विपत्तिमें तो सरकारकी ओरसे किये जानेवाले उपद्रव हैं; और इनसे भयभीत होकर लोग प्रकाशन आदिके सम्बन्धमें