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मदद करने में हिचकिचाते हैं। पाठक सरकारकी ओरसे किये जानेवाले उपद्रवोंके कुछ तथ्योंसे भली-भाँति परिचित हैं।

सरकारकी ओरसे जब पूछताछ की गई और यह कहा गया कि चूंकि 'नवजीवन' नया पत्र है, इसलिए भारत रक्षा अधिनियमकी रूसे बनाये गये विनियमोंके अनुसार इस पत्रको प्रकाशित करनेके लिए बम्बई सरकारकी ओरसे अनुमति प्राप्त करनी चाहिए। श्री इन्दुलाल याज्ञिकने सरकार द्वारा किया गया अर्थ ठीक ही होगा यह मानकर 'नवजीवन' प्रकाशित करने में भूल हुई है यह स्वीकार कर लिया। इस अवसरपर मैं धोराजी में था। आश्रम पहुँचकर तथा कानूनको पढ़नेके बाद मुझे लगा कि श्री इन्दुलाल याज्ञिकने भूल स्वीकार करके कुछ भूल की है। सत्याग्रहीके रूपमें उन्हें जो सत्य जान पड़ा उसे उन्होंने निर्मल हृदयसे स्वीकार कर लिया इसलिए इनके द्वारा किया गया यह काम, उनके द्वारा स्वीकार की गई भूल, उन्हें तो गौरवान्वित हो करता है; लेकिन मैंने पाया कि उन्होंने भूलसे भूल स्वीकार की। 'नवजीवन' नया पत्र कहला ही नहीं सकता; मासिक 'नवजीवन' का यह साप्ताहिक रूप है, यह सभी जानते और मानते हैं। मासिक 'नवजीवन' में "अने सत्य" इन पुनरुक्तिसूचक शब्दोंको निकाल देनेसे ही 'नवजीवन' को नया पत्र नहीं कहा जा सकता। इसपर उनकी सम्मति लेकर मैंने यह विचार किया कि जबतक सरकार किसी निश्चयपर नहीं पहुँचती तबतक 'नवजीवन' को जनताके सामने रखा जाना बन्द नहीं किया जा सकता।

सरकारको श्री इन्दुलाल याज्ञिकका पत्र वापस लिये जानेका तार[१] देनेके बाद मैंने ३६ घंटेतक उसके उत्तरकी राह देखी और अब अंक जनताके सामने पेश कर दिया गया है। किन्तु इससे 'नवजीवन' कठिनाइयोंसे मुक्त नहीं हो जाता। सच पूछा जाये तो आपत्तियोंको तो बुलाया गया है। युद्ध क्षेत्रमें विपत्तियोंको बुलावा देना ही पड़ता है। लेकिन 'नवजीवन' पर यदि सरकारकी कुटिल दृष्टि पड़ी तो एक गरीब प्रकाशक उसे प्रकाशित करनेकी जोखिम कैसे उठा सकता है। इस कारण 'नवजीवन' का अपना छापाखाना होना चाहिए। इसके लिए श्री शंकरलाल बैंकरने, जिन्होंने इस आर्थिक जोखिमको अपने कन्धोंपर उठाया है, एक छापाखाना खरीदा है। अब इस सम्बन्धमें मजिस्ट्रेटके सामने एक हलफनामा पेश करना होगा और बादमें एक और हलफनामा इस प्रेसमें 'नवजीवन' प्रकाशित करने के विषयमें भी देना होगा।

हमें उम्मीद है, इन कारणोंसे तथा छपनेवाली प्रतियोंकी बड़ी संख्याकी वजहसे मशीनोंमें खराबी आ जानेके कारण जो देरी हुई है पाठक उसे दरगुजर करके धीरज रखेंगे।

(यह सब लिखे जाने के बाद हमें सरकारकी ओरसे अनुमति मिल गई है, इसके लिए मैं सरकारके प्रति अपना आभार प्रकट करता हूँ और पाठकोंको बधाई देता हूँ।)

चरखा

स्वदेशी आन्दोलनकी सफलताका आधार ज्यादातर इस बातपर निर्भर करता है कि हम कपास ओटकर रुई तैयार करनेवाली कोई सादी और जल्दी ओट सकनेवाली

  1. यह तार उपलब्ध नहीं है।