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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अत्यन्त अश्लील विज्ञापन लेकर मुझे भेजा है। मैं उसे फिरसे छापकर 'नवजीवन' के पृष्ठोंको गन्दा नहीं करना चाहता था, इसलिए उसे नहीं छापा। लेकिन अगर कोई चाहे तो बहुत ही प्रमुख पत्रोंके विज्ञापन-पृष्ठों को उलटकर मेरी आलोचनाकी सचाई परख सकता है।

अब दो शब्द 'यंग इंडिया' की नीतिके बारेमें भी। यह व्यक्तियोंके प्रति होनेवाले अन्यायोंकी ओर ध्यान आकृष्ट करनेका अपना कर्त्तव्य तो निभायेगा ही, साथ ही रचनात्मक सत्याग्रह और यदा-कदा परिशोधक सत्याग्रहकी ओर भी शक्ति लगायेगा। परिशोधक सत्याग्रहका मतलब है, जहाँ रौलट अधिनियम जैसे किसी दुराग्रहपूर्ण और गिरानेवाले अन्यायको दूर करानेके लिए प्रतिरोध आवश्यक हो जाये वहाँ सविनय प्रतिरोध करना।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ८-१०-१९१९

१४१. भाषण : बड़ौदामें

[अक्तूबर ९, १९१९]

हममें उत्साह है और सद्भावनाएँ भी हैं; लेकिन इस उत्साह अथवा भावनाओंसे हमारा उद्धार होनेवाला नहीं है; हमें इनसे अपनी मनचाही वस्तु मिलनेवाली नहीं है। हम जो कुछ करेंगे वह काम ही हमारा साथ देगा और उसीपर भविष्यका निर्माण होगा। अगर हम अपने उत्साहको अपनी कृतिमें न उतारें, उसे कोई अच्छा अंजाम न दे सकें तो हमारा उत्साह मिथ्या है। भावनाओंको जाग्रत करनेका कार्य अच्छा है, उसकी ऐसे समय आवश्यकता भी है। लेकिन लोगोंकी भावनाओंको जाग्रत करनेकी अपेक्षा यदि हम अपना कार्य करनेमें निरत हो जायें तो उसका ज्यादा असर होगा, और हम जनताकी भावनाओंको काम कर दिखानेकी दिशामें अधिक प्रेरित कर सकेंगे।

कल स्टेशनपर बड़ी अव्यवस्था थी। जहाँ व्यवस्था अच्छी होती है वहाँ चाहे कितने ही व्यक्ति क्यों न हों, सभी शान्तिपूर्वक काम कर सकते हैं। मुझे परेशानी न हो, इतना ही पर्याप्त नहीं है। मैंने देखा, कुछ लोग मुझे सुरक्षित रखने में लगे हुए थे। लेकिन स्थिति तो ऐसी होनी चाहिए कि किसीको भी परेशानी न हो। कितने ही लोगोंकी भीड़ क्यों न हो, यदि व्यवस्था ठीक रहे तो आसानीसे शान्ति रखी जा सकती है। यहाँ तो उसके लिए अनुकूल वातावरण भी है। यहाँ एक सुन्दर व्यायामशाला है। मैं तो सदासे यही कहता आया हूँ कि शिक्षण-पद्धतिमें व्यायामकी खास जरूरत है। लाखों व्यक्ति यदि एक निश्चित कार्यक्रमके अनुसार अनुशासनपूर्वक चलें, एक संकेत किया जाये और वे उसे समझ लें, तो सब कुछ हो सकता है। ऐसी शक्ति हममें आनी ही चाहिए।

आजकल हमारी जो दशा है उसमें हमें कामोंको जल्दी निपटाना सीखना चाहिए। कल जलूसमें दो घंटे व्यर्थ गये। ऐसे जलूस बिलकुल ही नहीं निकाले जाने चाहिए, सो