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भाषण : बड़ौदामें

मैं नहीं कहता; लेकिन हमें समयका ध्यान रखना चाहिए। इस समय हिन्दुस्तानकी जो हालत है उसमें हम जलूस और ऐसे ही दूसरे तमाशोंमें व्यर्थ समय नहीं गँवा सकते। जलूसमें भाग लेने, 'वन्देमातरम्' की पुकारों, मातृभूमिके जयघोष से हम देशकी सेवा नहीं कर सकते। इस समय हमारा हिन्दुस्तान त्रिविध तापसे पीड़ित है। इनसे हमें मुक्त होनेके लिए जलूसोंकी नहीं बल्कि इन तापोंका उपचार कर सकनेवाले वैद्योंकी जरूरत है; तमाशेकी नहीं, योग्य उपचार करनेकी आवश्यकता है। वीर पुरुषों और वीर माताओंकी जरूरत है। जनताके नेताओंका समय जनताका समय है, वह हमें बचाना चाहिए। मेरा हिसाब तो सीधा है। कलके जलूसमें लगभग चार-पाँच हजार व्यक्ति तो होंगे ही, यदि प्रत्येक व्यक्तिकें दो-दो घंटे लें तो जनताके आठ-दस हजार घंटे नष्ट हुए। ये घंटे - मेरे मनपर तो अभी चरखा ही चढ़ा हुआ है, इसलिए में तो यही कहूँगा अगर खड्डियों में [कपड़ा बुननेमें] व्यतीत किये जाते तो कितना काम हो सकता था? इस तरह वक्त बरबाद करनेसे मैं तो कहूँगा कि मनुष्य अपनी कुटिया में बैठे-बैठे कोई सद्विचार करे तो वह भी अच्छी तरहसे समय व्यतीत करना कहलायेगा। हम समयकी इस तरह कीमत आँकना सीखेंगे तभी हम अमरीका, जापान और यूरोपके साथ होड़ कर सकेंगे।

हममें से जिन्हें अपने देशके त्रिविध तापका ज्ञान हो उन्हें उनको कम करनेका प्रयत्न करना चाहिए। जब आग लगी हो उस समय हम उसे बुझानेके सिद्धान्तोंको ढूंढ़ने और नियम गढ़नेके लिए नहीं बैठते, बल्कि पानी लेकर आग बुझाते हैं और आग बुझा लेनेके बाद भविष्य में तत्सम्बन्धी नियम बनाते हैं। अतएव इस समय जो सेवा करनेके लिए उत्सुक हैं और सेवाकी कुंजी जिनके हाथ लग गई है उन्हें तो लोगों में भावनाएँ जगानेके काममें समय खोनेके बजाय काम करने में ही जुट जाना चाहिए। उनका सबसे पहला, दूसरा और अन्तिम कर्त्तव्य यही होना चाहिए। कार्य करनेके बाद और उसीको करते हुए वे [जनताको] अपना सन्देश अच्छी तरह से सुना सकेंगे।

अभिप्राय सिर्फ इतना ही है कि कल रातकी पुनरावृत्ति न हो। जननायक, जनताके सेवक हैं। यदि वे जलूसों आदिके विचारसे सेवा करनेके लिए प्रेरित हुए हैं तो उनकी सेवामें कमी है। सेवकको कोई दान नहीं चाहिए, सेवकको किसीकी पूजा-अर्चनाकी आवश्यकता नहीं। पूजाकी इच्छासे की गई सेवा, सेवा नहीं है और यदि जनताको उनकी पूजा करनी ही है तो जनताको वह भी सीखनी चाहिए। यह देखना चाहिए कि पूजा कैसे की जा सकती है l? उन्हें अपने नेताओंकी भावनाओंका भी सम्मान करना चाहिए।

मैंने [त्रिविध तापकी] जो बात कही वह क्या है? पहला ताप तो भुखमरी है। हम भारतकी स्थितिका मूल्यांकन बम्बईके करोड़पतियों अथवा अरबपतियोंसे नहीं कर सकते। उनकी स्थितिसे हम हिन्दुस्तानको सम्पन्न अथवा निर्धन नहीं कह सकते। बल्कि जबतक हिन्दुस्तान के साढ़े सात लाख गाँवोंमें रहनेवाले बुनकरों और किसानोंकी हालत खराब है तबतक हिन्दुस्तान खुशहाल है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। मैं भारतमें जबरदस्त भुखमरी देख रहा हूँ। कितने ही लोगोंको सूखी रोटी और नमकपर निर्वाह