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१४३. पत्र : अखबारोंको

आश्रम
साबरमती
अक्तूबर १०, १९१९

सम्पादक

[बॉम्बे] 'क्रॉनिकल'

महोदय,

लखनऊ के खिलाफत-सम्मेलनने अगले शुक्रवार १७ तारीखको उपवास और ईश्वर-प्रार्थना दिवसके रूपमें मनानेका निश्चय किया है। इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रश्नपर मुसलमानोंकी भावना अत्यन्त तीव्र है, इसमें कोई सन्देहकी बात नहीं है। इसमें भी सन्देह नहीं है कि लीगके इरादोंपर अविश्वास किया जाता है। घोर संकटकी घड़ी में आदमीका एकमात्र सहारा ईश्वर होता है, और भारतके लाखों मुसलमान सान्त्वना, मार्गदर्शन और राहतके लिए उसी ईश्वरकी शरण लेंगे। उस दिन लाखों कण्ठ उस सर्वशक्तिमान् से दुआ माँगेंगे कि वह यदि चाहे तो इस आसन्न विनाशसे उन्हें बचाये। एक सच्चा मुसलमान टर्कीका विभाजन होता देखकर भी शान्त रह सके, यह उतना ही असम्भव है जितना कि किसी ईसाईके लिए उस स्थानको भ्रष्ट होते देखकर शान्त रहना जो उसे सबसे अधिक प्रिय है और उसके सबसे ज्यादा करीब है।

प्रश्न है कि हिन्दू क्या करें? मुझे लगता है कि उन्हें अपने मुसलमान भाइयोंसे पीछे नहीं रहना चाहिए। हिन्दुओं द्वारा उपवास और प्रार्थना किये जाना मंत्री और बन्धुत्व-भावनाकी सबसे सच्ची कसौटी होगी। मैं आशा करता हूँ कि प्रत्येक हिन्दू स्त्री-पुरुष १७ अक्तूबरको उसी रूपमें मनायेगा, और इस प्रकार हिन्दू- मुसलमानोंके सम्बन्धोंपर एक पवित्र मुहर लगा देगा।

उस दिन हड़ताल भी रहेगी। उसका उद्देश्य सम्राट्के मन्त्रियोंको यह जताना है। कि स्थिति कितनी गम्भीर है। लेकिन हड़ताल प्रभावशाली हो, इसके लिए जरूरी है कि वह शान्तिपूर्ण और ऐच्छिक हो। बलका तनिक भी प्रयोग करनेसे हड़तालका उद्देश्य विफल हो जायेगा। यदि मुसलमान सचमुच महसूस करते हों, और यदि हिन्दू अपनी मैत्रीके दावेमें सच्चे हैं, तो स्वभावतः दोनों ही १७ अक्तूबरको स्वेच्छासे सब कारोबार बन्द रखेंगे। मैंने अपने पिछले अनुभवोंके आधारपर यह सलाह देनेका साहस किया है। कि उस दिन किसी जलूस या सभाका आयोजन नहीं होना चाहिए।[१] स्वयंसेवकों और मुसलमानोंको, जो जुमा मस्जिद जायेंगे, छोड़कर बाकी सब लोग अपने घरोंमें ही रहें। तनिक भी शान्ति भंग होनेसे एक अत्यन्त शानदार अनुष्ठानको धक्का पहुँचेगा। इसलिए मैंने यह भी सुझाव दिया है कि मिल मजदूरोंको काम रोकनेके लिए किसी

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