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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

झता हूँ, सभी गैर-मुस्लिम लोगोंको उपवास, प्रार्थना और हड़तालमें मुसलमानोंका साथ देना चाहिए। उपवास और प्रार्थनाको मैं शुद्ध धार्मिक क्रिया मानता हूँ, वे प्रदर्शनका अंग नहीं हैं। हाँ, हड़ताल प्रदर्शनके लिए ही है। [किन्तु] वह स्वेच्छाजन्य होनी चाहिए। व्यक्तिश: मैं तो अगर बहुत ही कम हिन्दू इसमें साथ दें तो उसकी परवाह नहीं करता, और अगर कोई भयके कारण इसमें शामिल होता है तो चाहे ऐसे लोगोंकी संख्या कितनी भी बड़ी हो, मुझे बड़ा दुःख होगा। इस खयालसे कि कोई अघटनीय बात घटित न हो जाये, मैंने सुझाव दिया है कि प्रदर्शन न किये जायें, सभाएँ न बुलाई जायें, लोग अपने-अपने घरोंमें ही रहें और जो लोग अपनी दुकानें खुली रखना चाहें उनकी सुरक्षाके लिए स्वयंसेवकोंको कारोबारके ऐसे केन्द्रोंका चक्कर लगाते रहना चाहिए। मिल मजदूरोंसे कामका नागा करनेको न कहा जाये और सफाई तथा ऐसे ही अन्य दैनिक कार्योंके लिए जिन लोगोंकी जरूरत हो उन्हें विशेष रूपसे काम बन्द न करनेकी सलाह दी जाये। अगर आप मुझसे सहमत हों तो आशा है, इस सुझावको कार्यान्वित करनेके लिए आप जो उचित समझेंगे करेंगे।

हस्तलिखित मूल अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० १९८२७) की फोटो-नकलसे।

१४५. तार : सादिक अलीको

[अक्तूबर १०, १९१९ या उसके बाद]

सादिक अली
रामपुर,

[अली-] बन्धुओंको अनुमति देनेके लिए शिमला तार भेजा है। कृपया तार द्वारा [उनकी माँकी] हालत सूचित करें।

गांधी
अहमदाबाद

हस्तलिखित अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० १९८२४) की फोटो- नकलसे।