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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

व्यापार सहज ही मन्द पड़ जाते हैं। इकलौते पुत्रकी मृत्युसे माँको दुःख होता है। उसे खानेकी सुध नहीं रहती। ऐसी ही पीड़ा जब राष्ट्रके किसी व्यक्तिके दुःखी होनेपर अन्य सब लोगोंको होती है तब राष्ट्र जन्म लेता है - ऐसा कहा जा सकता है। ऐसा राष्ट्र अमरत्व भोगनेके योग्य बनता है। यह हम जानते हैं कि हिन्दुस्तान में अनेक भाई और बहनें महान् संकटमें रहते हैं इसलिए वस्तुतः देखा जाये तो हमारे लिए प्रार्थनामय उपवासका समय धीरे-धीरे समीप आता जा रहा है। लेकिन राष्ट्रीय जीवन में [अभी] इतनी व्याकुलता, इतनी शुद्धता नहीं आ पायी है। फिर भी अनेक ऐसे प्रसंग आ जाते हैं जब हमारी आत्मा कष्टसे भर जाती है।

ऐसा एक अवसर इस्लामी भाइयोंपर आ पड़ा है। 'नवजीवन' के पाठकवृन्द उससे परिचित हैं। यदि टर्कीके टुकड़े हो गये तो खिलाफत खत्म हो जायेगी, खिलाफतके खत्म होनेसे इस्लाम निस्तेज हो जायेगा। इसे मुसलमान कभी सहन नहीं करेंगे। श्री एन्ड्रयूजने मेरे साथ अपनी सहमति प्रकट करते हुए कहा है कि यदि मुसलमानोंको न्याय मिलता न जान पड़े तो श्री मॉण्टेग्यु और वाइसराय महोदयको इस्तीफा दे देना चाहिए। यह उपचार आवश्यक है लेकिन यह बाह्य है, इसकी अपेक्षा असंख्य गुना बलशाली उपचार मुसलमान भाइयोंके हाथमें है। यह तय किया गया है कि १७ अक्तूबर शुक्रवारके दिन मुसलमान रोजा रखें अर्थात् चौबीस घंटेका उपवास करें; इसलिए १६ की साँझसे १७ तारीख के दिन तकका सारा समय इबादत अर्थात् प्रार्थनामें व्यतीत करें। यह विचार अत्यन्त सुन्दर है। दुःखके समय ईश-स्मरणसे जितना लाभ होता है, जितनी शान्ति मिलती है उतनी शान्ति और उतना लाभ अन्य किसी उपायसे नहीं मिलता।

ऐसे अवसरपर हिन्दुओंका कर्त्तव्य भी स्पष्ट है। हिन्दू यदि मुसलमानोंको अपना भाई मानते हैं तो उन्हें उनके दुःखमें पूरा-पूरा हिस्सा लेना ही चाहिए। हिन्दुओं और मुसलमानोंमें ऐक्य बढ़ानेका यह बड़ेसे-बड़ा और सर्वाधिक सरल उपाय है। दुःखमें भाग लेना ही भाईचारेकी खरी निशानी है। इसलिए में उम्मीद करता हूँ कि सारे हिन्दुस्तान में प्रत्येक स्त्री और पुरुष १७ अक्तूबरका दिन उपवास और प्रार्थनामें व्यतीत करेगा। हिन्दुओंके लिए 'गीता' सर्वमान्य ग्रन्थ है। इसे शुरूसे लेकर अन्ततक अर्थ सहित पढ़ना और पढ़ाना; इस तरह दिन पवित्रतासे व्यतीत हो सकेगा और यही हिन्दुओंकी प्रार्थना मानी जायेगी।

मुझे लगता है कि उस दिन हम निर्भय होकर हड़ताल कर सकते हैं। जो स्वतन्त्र हैं उन्हें कारोबार बन्द रखना चाहिए। नौकरों और मजदूरोंको तथा जो अस्पताल आदिमें काम करते हैं उन सबको काम बन्द करनेकी जरूरत नहीं है। उस दिन सब लोग अपने घर बैठें। जलूस बिलकुल न निकालें तो भी हानिका भय नहीं है। उपवास और प्रार्थनामें बल-प्रयोग बिलकुल ही नहीं किया जाता। यही बात काम बन्द करनेके विषय में लागू होनी चाहिए। हड़तालका असर तो सिर्फ लोगोंकी उसके साथ सहमति होनेपर ही हो सकता है। हिन्दुओं अथवा मुसलमानोंकी भावनाओंका मूल्यांकन स्वेच्छासे की गई हड़तालसे ही किया जा सकता है। हड़ताल स्वेच्छा से हो सके, इसलिए नियुक्त स्वयंसेवक बाहर घूम-फिर सकते हैं। दुकान खुली रखनेवाले और