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विधवाओंको कष्ट

काम-धन्धा करनेवालों में से किसी व्यक्तिको कोई नुकसान न पहुँचाये, अनुचित दबाव न डाले - इन बातोंकी देखभाल करना इन स्वयंसेवकों का कर्त्तव्य माना जाना चाहिए।

सरकार यदि समझदारीसे काम ले तो उसे इस कार्य में प्रोत्साहन देना चाहिए। वाइसराय महोदयका धर्म है कि मुसलमान भाइयोंके प्रति अपनी सहानुभूति प्रदर्शित करनेके लिए तमाम अधिकारियोंको सूचित कर दें कि लोगों द्वारा हड़ताल किये जानेके काममें वे कोई अड़चन न डालें। यदि वाइसराय महोदय इससे आगे बढ़ें तो उस दिन [सरकारी] काम भी बन्द रखे जा सकते हैं और इस तरह जनताको भारी शान्ति प्रदान की जा सकती है। सरकार ऐसा करे या न करे, लोगोंका कर्त्तव्य तो स्पष्ट है। हिन्दू-मुसलमान दोनों मिलकर १७ अक्तूबरका दिन उपर्युक्त कथनके आधारपर व्यतीत करें।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १२-१०-१९१९

१४८. विधवाओंको कष्ट

सूरतकी ग्यारह बहनोंने अपने कष्टकी कहानी लिखते हुए दो पत्र लिखे हैं। "हम वैष्णव, वणिक विधवा, बाल-विधवा" इस तरह इन बहनोंने अपना पत्र शुरू किया है। अपने नाम दिये हैं लेकिन मां-बापके नाम और रहनेके स्थानको छिपाया है। मुझे खेद है कि इन बहनोंने अपना पूरा परिचय नहीं दिया। समाचारपत्रोंका कानून ऐसा है कि छोटे-छोटे पत्रोंपर सम्पादक कोई ध्यान नहीं देता; ऐसा करना जरूरी भी है। सम्पादकका कर्त्तव्य है कि यदि लेखक अपना नाम प्रकाशित न करवाना चाहे, तो वह उसकी इस इच्छाका पूरी तरहसे सम्मान करे; लेकिन उसकी जानकारीके लिए लिखनेवालेको अपना पूरा परिचय देना ही चाहिए। ऐसा न हो तो प्रबल इच्छा होते हुए भी सम्पादक अपने समाचारपत्र द्वारा जितनी सहायता करना चाहता है, उतनी नहीं कर सकता। इन बहनोंका उदाहरण ही लीजिए यदि मुझे इनका ठौर-ठिकाना मालूम होता तो और अधिक बातें मालूम कर सकता था और उनके दुःखमें भाग ले सकनेवालोंका पता भी लगाता। उपर्युक्त पत्रोंमें ऐसी और दूसरी त्रुटियोंके होनेपर भी कुछ एक सामान्य बातें ऐसी हैं कि सबको उनसे परिचित होना ही चाहिए। इन ग्यारह बहनोंमें से तीन कुछ हदतक शिक्षा प्राप्त हैं और आठ निरक्षर हैं। इनमें से एक मुश्किलसे आठ दिनोंमें 'नवजीवन' पढ़ पाती है। जात-बिरादरीके लोग दुरदुराते हैं, पति-भक्षिणी कहते हैं, उन्हें चाहे जिसके दबाव में रहना पड़ता है, वे शिक्षा में शून्य होती हैं और उन्हें घी, शक्कर आदि क्वचित् ही दिया जाता है। सूरतमें वणिकोंके बयालीस उपभेद हैं, इनमें सात सौ बाल-विधवाएँ तो अवश्य होंगी। धर्म क्या चीज है, यह कोई नहीं जानता।

हम विधवा-धर्म समझती हैं; लेकिन उसका पालन कर सकें, ऐसे साधन हमें प्राप्त नहीं होते। हमें किसी आश्रम में रखकर अच्छी शिक्षा दी जाये