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टिप्पणियाँ


धर्मके पालन में जबरदस्तीकी बिलकुल गुंजाइश नहीं है। इसलिए सूरत में बाल-विधवाओंके सम्बन्ध में वैष्णवों और दूसरे हिन्दू परिवारोंको मैं तो यही सलाह देता हूँ कि वे ऐसी योजनाएँ बनायें और उन्हें अमल में लायें जिनसे विधवाओंका मन [अच्छे कामोंकी ओर] लगा रहे और वे लोभमें न फँसें। फिर जो बाल-विधवा है उसे विवाह न करनेके लिए प्रेरित करना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी यह भी है कि यदि वह विवाह करना चाहे तो उसके मार्ग में कोई विघ्न उपस्थित न किया जाये। वैधव्यका पालन करना एक पुण्य कर्म है; लेकिन विधवा-विवाह भी सर्वथा पापकर्म तो नहीं है। यदि विभिन्न जातियाँ वर्णाश्रम धर्मको शोभान्वित करना चाहती हों, उसके [सर्वथा] लुप्त होने की कामना न करती हों तो वर्णाश्रम धर्ममें जो अनेक कुरीतियाँ घर कर गई हैं, उनको दूर करना पड़ेगा और उससे उत्पन्न प्रत्येक प्रश्नका धार्मिक दृष्टिसे निर्णय करना होगा। इसलिए में विधवाओंसे कहता हूँ: "आप अपने वैधव्यको पवित्र मानकर शोभान्वित कीजिए। हिन्दू-समाज में ऐसे अनेक उदाहरण बिखरे पड़े है।" विभिन्न जातियोंसे अनुरोध करना चाहूँगा: "यदि बाल-विधवाएँ पुनर्विवाह करना चाहें तो वे उनका तिरस्कार न करें, उनका जाति-बहिष्कार न करें।"

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १२-१०-१९१९

१४९. टिप्पणियाँ

जमानत से मुक्ति

पाठकों को याद होगा कि जब 'नवजीवन' को साप्ताहिक किया गया उस समय पाँच सौ रुपयेकी जमानत देनेका आदेश मिला था। उसके बाद जो घटाएँ छाई और छँट गईं उसकी खबर भी हम दे चुके हैं।[१] व्यवस्थापकोंने महसूस किया कि 'नवजीवन' जैसे पत्रको, जिसे प्रकाशित करने में बहुत सारे जोखिम झेलनेको तैयार रहना पड़ेगा और जिसकी प्रतियाँ एक बड़ी मात्रा में नियमित रूपसे लोगों के पास पहुँचानी होंगी, निर्विघ्न रूपसे तो अपने ही छापाखाने में छापा जा सकता है। इस तरह बाहरी अड़चनों को तो कमसे कम किया ही जा सकता है। इससे शंकरलाल घेलाभाई बैंकरने, जो आर्थिक सहायता देने के लिए जिम्मेदार हैं, मनहर प्रेसको खरीद लिया है और अब यह 'नवजीवन मुद्रणालय' के नामसे पुकारा जायेगा। इसके अतिरित 'यंग इंडिया' का बम्बई से और 'नवजीवन' का अहमदाबादसे प्रकाशन करने में बहुत कठिनाई जान पड़ी; क्योंकि 'यंग इंडिया' की जिम्मेदारी भी 'नवजीवन' के सम्पादकपर ही है। इसलिए 'यंग इंडिया' को भी अहमदाबादसे प्रकाशित करनेका निश्चय किया गया। जिसके फलस्वरूप 'नवजीवन', 'यंग इंडिया' तथा 'नवजीवन मुद्रणालय'

  1. देखिए "टिप्पणियाँ ", ५-१०-१९१९।

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