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जगत् का पिता - ३

बड़ा प्रश्न उठ खड़ा हुआ। क्या फिरसे फूसकी पाठशाला बनाएँ और फिर उसके जला दिये जानेका जोखिम उठाया जाये? श्री सोमण और डॉक्टर देवने ईंटकी शाला बनानेका निश्चय किया। दोनों भाषण करनेकी कला तो सीख गये थे। उन्होंने आवश्यक सामानकी भिक्षा माँगी। जहाँ जरूरत जान पड़ी वहाँ पैसे भी दिये, किन्तु दोनोंने स्वयं मजूरी करना जारी रखा। पक्की पाठशालाकी नींव उन्होंने अपने हाथसे रखी, ग्रामवासी भी सहयोग देने लगे। कारीगरोंने भी यथाशक्ति उनकी मदद की और भीति-हरवाकी शाला आज भी इस बातकी साक्षीके रूपमें मौजूद है कि एक-दो व्यक्ति भी जो चाहें सो कर सकते हैं। इस तरहका कार्य सिर्फ एक ही गाँवमें नहीं वरन् कम-ज्यादा जहाँ-जहाँ पाठशालाएँ खोली गईं उन सभी स्थानोंपर किया गया और ग्रामवासी भी शिक्षकोंके कार्यकी आकर्षण शक्तिसे प्रभावित होकर तदनुरूप काम करनेवाले बन गये। इस सेवामें बहुत ज्यादा होशियारीकी नहीं बल्कि उत्साह और धैर्यकी जरूरत थी। होशियारी और कारीगरी आदि गुण तो दूसरोंसे मिल जाते थे।

खेड़ा जिलेमें फसलका मूल्य आँका जानेको था। यह काम तबतक सम्भव नहीं था जबतक कि सारे किसान मदद न करते। हर गाँवके लिए नियुक्त स्वयंसेवकने न केवल सारी सूचना प्राप्त की बल्कि उन्होंने किसानोंके मनको भी हर लिया। में भिन्न-भिन्न स्थानोंके ऐसे अनेक उदाहरण प्रस्तुत कर सकता हूँ।

अब हम देख सकते हैं कि जो व्यक्ति गाँवोंका सुधार करना चाहता है, उसे कहाँसे आरम्भ करना चाहिए। उसे सेवाके लिए वही गाँव चुनना चाहिए जहाँ वह रहता चला आया है। उसे सभी ग्रामवासियोंसे जान-पहचान कर लेनी चाहिए और बिना किसी आडम्बरके उनके दुःखमें भाग लेना चाहिए। वह गलियाँ आदि साफ रखने में उनकी मदद माँगे। पड़ोसी हँसी उड़ायेंगे, अपमान भी करेंगे - स्वयंसेवक यह सब सहन करेगा, और इसके बावजूद पहलेकी तरह उनके दुःखमें भाग लेगा तथा स्वयं अकेले ही गलियोंको साफ रखेगा। वह धीरे-धीरे अपनी स्त्री, माँ, बहन आदिको भी इस कार्य में लगायेगा। पड़ोसी मदद करें या न करें तो भी गलियाँ तो साफ ही रहेंगी और अनुभवसे मालूम होगा कि ऐसा करने में अधिक समय नहीं देना पड़ता। अन्तमें पड़ोसी स्वयं काम करने लगेंगे और एक गलीकी सुगन्ध समस्त गाँव में फैलेगी।

यदि यह सेवक अधिक समझदार और ठीक-ठीक पढ़ा-लिखा हुआ हो तो अपनी गलीके बच्चों और ऐसे प्रौढ़ व्यक्तियोंको भी जो निरक्षर हैं, अक्षरज्ञान करायेगा, यदि उसकी गली में कोई बीमार हो और वह किसी वैद्यसे अपना उपचार करवाने में असमर्थ हो तो वह उसके लिए वैद्य खोज निकालेगा। सार-सँभाल करनेवाला कोई न हुआ तो स्वयं सार-सँभाल करेगा। ऐसा करते हुए उसे प्रत्येक पड़ोसीकी आर्थिक और नैतिक स्थितिका अच्छा ज्ञान हो जायेगा। इस ज्ञानको पानेके बाद उसे जो सुधार करने उचित जान पड़ेंगे वह उनकी योजना बनायेगा और इस तरहके सुधारोंको करते हुए वह अपने पड़ोसीकी और उसकी मार्फत सारे गाँवकी राजनैतिक स्थितिपर भी विचार करेगा। और यदि इस खयाल के साथ-साथ उसमें लोगोंसे एकतासे काम लेनेकी शक्ति हुई तो ऐसा व्यक्ति लोगोंकी राजनैतिक स्थितिको भी सुधार सकेगा। आफ्रिका, चम्पारन, खेड़ा