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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आदि प्रदेशों में मैंने ऐसा देखा है कि जिन्हें हम अशिक्षित मानते हैं उन्होंने धैर्य और लोक-भावनाके बलपर बहुत सेवा की और वे जनसमाजको प्रभावित भी कर सके। जिन-जिन गांवों में मैंने एक भी सचेत पुरुष अथवा स्त्रीको देखा तो मैंने उन्हें सुन्दर काम करते हुए ही पाया।

अब हम स्वच्छता तथा नैतिक, शारीरिक और आरोग्यके सम्बन्धमें कुछ नियमोंकी जाँच करेंगे। मुझे उम्मीद है कि जिन्हें वे नियम पसन्द आयेंगे वे उन विषयोंके अनुसार अपने-अपने गाँवोंमें कार्य करने लगेंगे। यदि लोगोंने उनके अनुसार काम किया तो थोड़े ही समय में कुछ गाँवोंको स्थितिमें बहुत बड़ा परिवर्तन हो जायेगा।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १९-१०-१९१९

१५७. गुजरातकी भेंट

गुजरात-रत्न प्रोफेसर आनन्दशंकर बापूभाई गुजरात कॉलेजके साथ अपना सत्ताईस वर्ष पुराना सम्बन्ध तोड़कर काशी विश्वविद्यालयसे नाता जोड़ने जा रहे हैं; यह बात उनके मित्रोंको कुछ समय पहले मालूम हो चुकी थी और अब इस सप्ताह जो दो समारोह हुए उनसे यह बात सभीको मालूम हो गई है। एक समारोह साहित्य सभाकी ओरसे और दूसरा गुजरात कॉलेजके विद्यार्थियोंकी ओरसे किया गया था। दूसरे समारोहकी अध्यक्षता कॉलेजके प्रिंसिपल महोदयने की थी। इन दोनों समारोहों में प्रोफेसर ध्रुवको मानपत्र प्रदान किये गये। उन्हें मानपत्र देकर गुजरातियोंने स्वयं अपनेको सम्मानित किया है।

प्रो० ध्रुवमें धर्म और विद्वत्ताका जितना सुन्दर समन्वय दिखाई देता है उतना सुन्दर समन्वय बहुत कम भारतीयों में दिखाई पड़ता है। इन्होंने शिक्षा देनेका व्यवसाय पैसे कमाने के इरादेसे नहीं अपनाया है। अर्थात् उन्होंने अध्यापनका कार्य इस मान्यताके आधारपर सँभाला है कि इसके द्वारा वे देशकी विशेष सेवा कर सकेंगे। एक लेखकके रूपमें प्राप्त अपनी साखके प्रति वे पूरी तरह जागरूक रहे हैं। लेखककी जवाबदेही वैसे भी साधारण नहीं है, फिर उनमें भी जिन्हें प्राचीन साहित्य-सागरमें गोते लगाकर मोती निकालने हों, उनकी जवाबदेही तो बहुत ज्यादा हो जाती है। संस्कृत साहित्य समुद्रके समान है। इसकी गहराईका अन्दाज लगाना मुश्किल है। इस साहित्यका सामान्य ज्ञान बहुत कम लोगोंको है। इसलिए इसमें आलस्य और अप्रामाणिकताकी गुंजाइश है। आधुनिक साहित्य में हम इसके उदाहरण कदम-कदम-पर देख सकते हैं। 'भगवद्गीता'के हमारे पास कितने ज्यादा अनुवाद हैं; मगर उनमें एकसे भी सन्तोष कर सकना कठिन है। गुजराती जनताके समक्ष 'मनुस्मृति' का जो अनुवाद आया है उसपर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता। आलस्यसे, अज्ञानसे और अनेक बार जान-बूझकर की गई गलतियोंके कारण जनताको