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१५९. पत्र : वत्तलको

[अहमदाबाद
अक्तूबर २२, १९१९ के पूर्व][१]

प्रिय श्री वत्तल,


आपका पत्र बम्बई में मिल गया था; उत्तर देने में देरीके लिए क्षमा करेंगे। मैंने बम्बई से लौटकर अपने कागजात देखे कि कुछ मिलता है या नहीं। आपने मुझसे लगभग १८ साल पूर्वकी घटनासे सम्बन्धित कागजात मांगे हैं। मैंने अपनी पुरानी फाइलें देखीं, लेकिन आपने जो चाहा है वह सब तो मुझे नहीं मिला। फिर भी, बोअर युद्धके समय भारतीय समाजके कार्योंकी दक्षिण आफ्रिकाके लोगोंके मनपर क्या छाप पड़ी थी, [इन कागजोंसे] मोटे तौरपर उसका अन्दाज तो हो ही जायेगा। श्री एस्कम्ब, जिन्होंने हमें सहयोगके लिए निमन्त्रित किया, नेटालके प्रधान मन्त्री और नटाल नागरिक सेना कमांडर रह चुके थे, और इसी प्रकार सर जॉन रॉबिन्सन भी वहाँके एक भूतपूर्व प्रधान मन्त्री थे। मैं इन बातोंका उल्लेख इसलिए कर रहा हूँ कि साथके कागजोंमें[२] आपको ये सारे नाम मिलेंगे। हम लोग कॉलेजों, स्पियनकॉपकी लड़ाईमें मौजूद थे और वॉलकांकी मुठभेड़ में भी। हमें घायल लोगोंको डोलीपर उठाकर कोई २० मील दूर ले जाना पड़ता था और रास्ते में उन्हें खिलाना-पिलाना, उनकी सेवाशुश्रूषा आदि करनी पड़ती थी। लेडीस्मिथके उद्धारसे सम्बन्धित जनरल बुलरके खरीते में मेरे नामका उल्लेख भी किया गया था। सहायक दलके अगुओंको दक्षिण आफ्रिकी युद्ध-पदक दिये गये। लेडीस्मिथपर जब एक पहाड़ीसे बोअर लोग अपनी तोपोंसे लगातार गोले बरसा रहे थे, उस समय गंगासिंह[३] नामक गिरमिटिया भारतीय उस पहाड़ीके बिलकुल सामने एक पेड़पर जा चढ़ा और वहाँसे वह, जब भी तोप चलाई जाती, उसकी कौंध देखकर घंटा बजाता और इस प्रकार लोगोंको आगाह करता कि गोला आ रहा है, उससे बचने के लिए जहाँ जगह मिले छिप जाओ। उसने अपना यह भयानक और दुर्वह कार्य बड़ी मुस्तैदी और चौकसीसे सम्पन्न किया और उसकी इस दिलेरी और वफादारीके लिए लॉर्ड कर्जनने उसके लिए खिलअत भेजी। डर्बनके मेयरने लॉर्ड कर्जनकी ओरसे डर्बन टाउन हॉलमें उसे सार्वजनिक रूपसे यह खिलअत बख्शी थी।

  1. यह पत्र अहमदाबादसे लिखा गया जान पड़ता है। सही तिथि ज्ञात नहीं है। फिर भी एसा लगता है कि यह तथा अगला पत्र अक्तूबर २२, १९१९ के पूर्व लिखे गये होंगे; क्योंकि उसके बाद गांधीजी पंजाब चले गये और फिर उन्हें वर्षके अन्ततक वहीं रहना पड़ा।
  2. ये उपलब्ध नहीं है।
  3. यहाँ प्रभुसिंह होना चाहिए था; देखिए खण्ड ३, पृ४ १७९।