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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


दुःख है कि आपने अपने पत्र में जिन काव्यांशोंका उल्लेख किया है वे मुझे मिल नहीं पाये। उनके लिए मैं अपने डर्बनके मित्रोंको लिख रहा हूँ। बोअर युद्धके समय हमारी संख्या १,००० थी। बोअर युद्ध के विषयमें इतना ही।

फिर १९०६ में जूलू विद्रोह हुआ। उस समय भी हमने सेवा करने की अपनी तैयारी जाहिर की। तब बहुत कम लोगोंकी जरूरत थी। निदान उसमें हममें से केवल २० लोगोंने मिलकर परिचारकों, अर्दलियों और डोलीवाहकों का एक छोटा-सा दल संगठित किया। हमें घायलोंको लेकर एक-एक बारमें मीलों, कभी-कभी तो अश्वारोही सैनिकदलके पीछे-पीछे ४०-४० मील प्रतिदिन के हिसाबसे, चलना पड़ता था। इस समय युद्धका क्षेत्र असीमित था। इस छोटे-से दलने युद्धकी सारी जोखिमें उठाईं। नेटालके तत्कालीन गवर्नर सर हेनरी मैक्कलमने इस दलकी सेवाओंकी प्रशस्ति करते हुए एक व्यक्तिगत पत्र लिखा था।

और तब आया यूरोपीय युद्ध। भारतीयोंने एक दल संगठित किया। सीधे जनरल स्मट्सके अधीन पूर्वी आफ्रिका में कितने लोगोंने काम किया, यह मुझे याद नहीं आता; किन्तु मुझे अपने एक दक्षिण आफ्रिकावासी मित्रसे, जो स्वयं इस दल में शामिल थे, मालूम हुआ है कि उन्होंने अपने कामसे अपने अधिकारीको पूरा सन्तोष प्रदान किया था। अगर और किसी जानकारीकी जरूरत हो तो मुझे लिखिए। यदि इन कागजोंको देखकर आप मुझे यथासम्भव जल्दी ही वापस भेज दें तो बड़ी कृपा हो।

हृदयसे आपका,

वत्तल

निजी सचिव

बीकानेर

हस्तलिखित मूल अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ६८५३) की फोटो-नकल से।

१६०. पत्र : एक मित्रको

[अक्तूबर २२, १९१९ के पूर्व]

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। इसमें क्षमा माँगने की कोई बात नहीं है। मेरी समझमें आप शायद यह चाहते हैं कि मैं वाइसरायको अपराधी मानकर उनकी अच्छी खबर लूँ। यदि आपका यही आशय है तो आप मेरे लेख पढ़नेपर देखेंगे कि मैंने यही किया भी है। वस्तुतः मैंने सुझाव दिया है कि छोटे कर्मचारियों को तो छेड़ने की जरूरत ही नहीं है।[१] वाइसराय और गवर्नरको ही निष्प्रभ करना हमारा काम है। मुरौवत, सद्भाव या सहयोग पानेकी इच्छाके कारण में सत्यपर पर्दा डाल देता हूँ, इस आरोपका

  1. देखिए "दण्डविमुक्ति विधेयक, २०-९-१९१९।