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पत्र : एक मित्रको

मैं कदापि समर्थन नहीं कर सकता। मेरे लिए इन तीनोंकी कसौटी सचाई ही है। और यदि मित्रोंको ऐसा लगा हो कि मुझसे त्रुटि हुई है तो वह जान-बूझकर नहीं हुई। मैं वाइसरायको वापस बुला लेनेकी माँग करनेवालोंमें शरीक नहीं हुआ; क्योंकि मैं अपने बाण हवामें कभी नहीं छोड़ता। जितनी चिन्ता मुझे न्याय पानेकी है, उतनी वाइसरायकी वापसीकी नहीं। पैगम्बरकी जिस सुन्दर कहानीका आपने उल्लेख किया है उसे मैं अच्छी तरह जानता हूँ और वस्तुतः उस दृढ़ताको मैंने नम्रभावसे अपने जीवनमें उतारनेका प्रयास किया है। भले ही मुझे उसमें कभी सफलता न मिली हो। मैंने किसी धमकी से डरकर सविनय अवज्ञा आन्दोलनको मुलतवी कर दिया है, ऐसा मानकर आप अपने और मेरे प्रति भी अन्याय करते हैं। मैंने सविनय अवज्ञाको मुलतवी किया है सत्याग्रहके ही नियम और आदेशोंके अनुसार। अलबत्ता सत्याग्रह मेरे लेखे जो कुछ है उसके अनुसार मुझे लगता है कि आप अभीतक सत्याग्रहके सिद्धान्तोंको आत्मसात् नहीं कर सके हैं, इसीलिए आपसे इसे समझने में यह भारी भूल हुई है। जब बाहरी लोग सत्याग्रहीको कमजोर हो गया मानते हैं तब वह पहले की अपेक्षा अधिक सशक्त होता है। सविनय अवज्ञाके मुलतवी कर दिये जानेसे रौलट अधिनियम रद कर दिये जानेका दिन पास सरक आया है। कानूनकी संहितासे तो उस अधिनियमको हटवाना ही है, मात्र निलम्बित कर दिये जानेसे मुझे सन्तोष नहीं होगा। यदि उसे हटवानेके लिए मुझे प्राण भी देने पड़ें तो मैं दूंगा क्योंकि, मैं फिर कहता हूँ कि सत्याग्रह मेरा जीवन है, श्वास है। आप आश्वस्त रहिये; मैं चाहे जिन कामोंमें क्यों न लगा रहूँ, रौलट अधिनियम रद कराने का सवाल मेरे मन में सदा बना रहता है। मुझे खुशी है कि आप स्वदेशीमें दिलचस्पी ले रहे हैं। यह जानकार दुःख हुआ कि आपको बम्बईके एक भण्डारका कुछ अच्छा तजुर्बा नहीं हुआ। आप अपनी जरूरतका सारा कपड़ा सबसे सस्ती दरपर इस स्वदेशी भंडारसे ले सकते हैं। पता है...

यदि आपको कोई कठिनाई हो तो मुझे लिखियेगा। कृपया 'यंग इंडिया' के एवज में मुझे दो उर्दू समाचारपत्र अवश्य भेजियेगा।

इमाम साहब बावजीर आजकल मेरे साथ रह रहे हैं। वे कभी- कभी उन्हें पढ़कर मुझे सुनायेंगे। मैं विज्ञापन छापनेके खिलाफ हूँ, क्योंकि वे बहुत ही झूठे होते हैं। हर अच्छे समाचारपत्रको उन पुस्तकोंका विज्ञापन निःशुल्क छापना चाहिए जिन्हें वह जनताके पढ़ने योग्य मानता है। मेरी रायमें यह समाचारपत्रोंका एक आवश्यक कर्त्तव्य है। मैं यह भी महसूस करता हूँ कि विज्ञापन छापनेके लिए हमारी एक सामान्य एजेन्सी होनी चाहिए जो कुछ शुल्क देनेपर सभी उपयोगी चीजोंको विज्ञापित कर दिया करे। परन्तु समाचारपत्र विज्ञापन छापकर पैसा कमायें, इस विचारको मैं नापसन्द करता हूँ। ऐसा करना जनताको ठगना है। अगले हफ्ते मेरे पंजाब जानेकी आशा है। यदि पंजाब में नवम्बर-भर मेरे रहने की जरूरत न हुई तो निश्चय ही में बम्बई या अहमदाबाद आऊँगा। मुझे आपसे दुबारा मिलकर और विचारोंका आदान-प्रदान

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