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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करके खुशी होगी। यह तो आप जानते ही हैं कि आपकी स्पष्टवादिता और स्वतन्त्र भावनाकी में कद्र करता हूँ। मेरा खयाल है कि इसमें आपके पत्रकी सभी बातोंका जवाब आ जाता है।

हृदयसे आपका,

हस्तलिखित अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ११७०६) की फोटो-नकलसे।

१६१. सत्याग्रही वकील[१]

सत्याग्रही वकीलोंके मामलेमें उच्च न्यायालयका फैसला[२], अगर कमसे कम कहा जाये तो, बहुत ही असन्तोषजनक है। इसने असली सवालको टाल दिया है। इस निर्णयका तर्कसम्मत परिणाम दण्ड होना चाहिए था, इसका स्थगन नहीं। मुकदमेसे सम्बन्धित सत्याग्रही वकीलोंने अपने कार्यपर किसी तरहका पश्चात्ताप प्रकट नहीं किया था। जहाँतक लोगोंको मालूम है, वे आवश्यकता पड़नेपर सविनय अवज्ञाके लिए अब भी तैयार हैं। जब सवाल उठ ही गया था, तो वकीलोंने दयाकी भीख न माँगकर स्पष्ट निर्णय माँगा था। लेकिन अभी तो सब कुछ जैसा है, उसमें उन्हें यही नहीं मालूम कि उनकी क्या स्थिति है।

विद्वान् न्यायाधीशोंने कानून-पेशा लोगोंके आचरणके जो सिद्धान्त निश्चित किये हैं, वे हमारी विनम्र सम्मतिमें, विवादास्पद हैं। उदाहरणार्थ इसका क्या मतलब है कि "जो कानूनके द्वारा जीविका कमाते हैं उन्हें कानूनकी मर्यादाका पालन करना चाहिए।" यदि इसका मतलब यह है कि कोई भी वकील किसी भी अवस्थामें, अदालतका कोपभाजन बने बिना सविनय अवज्ञा नहीं कर सकता, तब तो प्रगतिका मार्ग ही अवरुद्ध हो जायेगा। बुरे कानूनोंके खतरोंको समझनेकी सबसे अधिक सामर्थ्य वकीलोंमें ही होती

  1. यह लेख सम्पादकीय "टिप्पणियों"के स्तम्भमें प्रकाशित हुआ था।
  2. यह फैसला इसी अंकमें छापा गया था। जो इस प्रकार था: "अहमदाबादके सत्याग्रहो वकीलोंके मामलेमें बम्बई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश हीटन तथा काजीजीने १५ अक्तूबर, १९१९ को अलग-अलग, लेकिन एक तरहके निर्णय सुनाये थे। उच्च न्यायालयके मुख्य न्यायाधीशने अपने निर्णयके अन्तमें कहा था: मैं इस बातको पूरी तरह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि जिन लोगोंके नाम इस उच्च न्यायालय या जिला न्यायालयोंके वकीलोंके रूपमें दर्ज किये जाते हैं वे एक साथ दो मालिकोंके नीचे काम नहीं कर सकते । हो सकता है कि हमारे इस मतपर पूरा विचार करनेके बाद प्रतिवादी इसका औचित्य समझ लें। हम उनसे सख्ती से पेश नहीं आना चाहते और फिलहाल उन्हें चेतावनी देकर ही सन्तोष कर लेंगे। हम ऐसा इसलिए कर रहे हैं कि हमें बताया गया है कि अप्रैलके उपद्रवोंके बादसे सत्याग्रह सभा चुप है। हम इस मुकदमे में आगे कोई कार्रवाई करेंगे या नहीं, यह पूरी तरह इस बातपर निर्भर करता है कि आगे चलकर सत्याग्रह आन्दोलन कौन-सी करवट लेता है। इसी दृष्टिसे नोटिसों को स्थगित कर दिया जायेगा और एडवोकेट जनरल तथा प्रतिवादियों दोनों ही को यह छूट रहेगी कि यदि मौका आये तो वे इस मामले की सुनवाईके लिए फिरसे अर्जी दे सकते हैं।"