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पत्र : मद्रासके गवर्नरके निजी सचिवको

है और कानूनकी अपराधपूर्ण अवज्ञाको रोकनेके लिए सविनय अवज्ञा करना उनका पुनीत कर्तव्य होना चाहिए। वकीलको कानून और स्वतन्त्रताका संरक्षक होना चाहिए और इस हैसियतसे उन्हें इस बातकी चिन्ता बनी रहती है कि देशकी विधान संहिता "पवित्र और शुद्ध" बनी रहे। पर बम्बई उच्च न्यायालयके न्यायाधीशोंने कुछ ऐसा दृष्टिकोण पेश किया है जैसे कि वे केवल पैसोंके लिए काम करते हैं और उन्होंने वकीलों तथा न्यायाधीशोंके कर्त्तव्योंको गड़बड़ा भी दिया है। इस निर्णयसे उत्पन्न असह्य स्थिति से निकलने का एकमात्र उपाय यही बच रहा है कि प्रतिवादी वकील मामलेकी फिरसे सुनवाई करानेके लिए कार्रवाई करें, उसपर फिरसे बहस करायें और अन्तिम फैसलेकी माँग करें। भाग्यकी बात है कि न्यायाधीशोंने सत्याग्रही वकीलोंके लिए कमसे कम यह मार्ग खुला रखा है।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २२-१०-१९१९

१६२. पत्र : मद्रासके गवर्नरके निजी सचिवको

अहमदाबाद
अक्तूबर २२, १९१९

प्रिय श्री ड्रॉफ,

कुमारी फैरिंगके मामलेमें उदारता बरतनेके लिए परमश्रेष्ठको मेरी ओरसे धन्यवाद देनेकी कृपा करें। कुमारी फैरिंग सत्याग्रह आश्रम पहुँच गई हैं।[१]

हृदयसे आपका,

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ६९३३) की फोटो-नकलसे।

  1. गांधीजीने ४ अक्तूबर को मद्रासके गवर्नरके निजी सचिवको तार भेजा था कि एस्थर फैरिंगको अहमदाबाद आनेकी शीघ्र अनुमति दी जाये। गवर्नरके सचिवने ६ तारीखको गांधीजीके तारको प्राप्ति सूचना देते हुए लिखा था कि अगर कुमारी फैरिंग बम्बई जाने की अनुमतिके लिए सरकारको नियमानुसार प्रार्थनापत्र भेजें तो अनुमति देनेमें कोई असुविधा नहीं होगी।