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१६३. पत्र : बम्बई उच्च न्यायालयके पंजीयकको[१]

साबरमती
अक्तूबर २२, १९१९

सेवामें

पंजीयक
उच्च न्यायालय
बम्बई

प्रिय महोदय,

आपका इसी २० तारीखका पत्र मिला, जिसका विषय है "६ अगस्तके 'यंग इंडिया' में अहमदाबादके जिला न्यायाधीश, श्री कैनेडी द्वारा लिखे एक व्यक्तिगत पत्र और तत्सम्बन्धी कुछ टिप्पणियोंका प्रकाशन।"

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदयने मेरी पंजाब जानेकी तैयारी में बाधा न डालने की जो कृपा की, उसके लिए मैं उनका आभारी हूँ। कथित पत्रको मैंने किसी भी तरह निजी नहीं समझा और न उसका मजमून ही मुझे ऐसा लगा। यह पत्र भी मुझे उसी प्रकार मिला, जिस प्रकार सम्पादकोंको साधारण तौरपर पत्र आदि मिलते रहते हैं, और मैंने इसे प्रकाशित करनेका निर्णय तभी किया जब यह मालूम हो गया कि जिस व्यक्तिने मुझे यह पत्र दिया है उसके पास यह नियमित और खुले रूपमें ही पहुँचा था। मेरी विनम्र सम्मतिमें, कथित पत्र और तत्सम्बन्धी टिप्पणियोंका प्रकाशन मैंने एक पत्रकारकी अधिकार-सीमा में रहते हुए ही किया था। मुझे यह पत्र सार्वजानिक दृष्टिसे बड़ा महत्त्वपूर्ण जान पड़ा और मुझे लगा कि इसकी सार्वजनिक आलोचनाकी जरूरत है।

  1. अक्तूबर १८ को गांधीजीको बम्बई उच्च न्यायालयके पंजीयककी ओरसे एक पत्र मिला जो इस प्रकार था: "माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदयके आदेशानुसार मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि आप सोमवार पानी इसी २० तारीखको, ११ बजे दिनमें माननीय न्यायाधीशके कक्षमें पधारनेकी कृपा करें जिससे कि आप ६ अगस्तके यंग इंडिया में बम्बई उच्च न्यायालयके पंजीयकके नाम अहमदाबादके जिला न्यायाधीश श्री कैनेडी द्वारा लिखे एक व्यक्तिगत पत्र और तत्सम्बन्धी कुछ टिप्पणियोंके प्रकाशनके वारेमें स्पष्टीकरण करनेका अवसर पा सकें।" लगता है, इसपर गांधीजीने इस आशयका तार भेजा था कि अपनी पंजाब यात्राको योजनाके कारण वे स्वयं उपस्थित होनेमें असमर्थ हैं, इसलिए क्या लिखित स्पष्टीकरणसे काम चल जायेगा। तारका मूल पाठ अप्राप्य है; लेकिन उसके उत्तर में पंजीयकने इस प्रकार लिखा था: "आपके इसी २० तारीखके तारके सिलसिले में माननीय मुख्य न्यायाधीशके आदेशानुसार मैं सूचित करता हूँ कि माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय आपकी पंजाब जानेकी तैयारी में बाधा नहीं डालना चाहते। इसलिए फिलहाल वे आपके लिखित स्पष्टीकरणको माननेको तैयार हैं। मुझे जो बात स्पष्ट कर देनेका आदेश दिया गया है वह यह है कि ऐसे समय में, जब उक्त पत्र से सम्बन्धित मामला अदालत में विचाराधीन था इस अदालतकी अनुमतिके बिना हो यह पत्र और इसके सम्बन्ध में टिप्पणियों प्रकाशित की गई।" इसीके उत्तर में गांधीजीने यह पत्र लिखा था।