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पत्र : एस्थर फैरिंगको

मुझे भरोसा है कि माननीय न्यायाधीश महोदयको मेरे इस स्पष्टीकरणसे सन्तोष हो जायेगा।

लाहौरमें मेरा पता होगा : मार्फत श्रीमती सरलादेवी चौधरानी।[१]

आपका,

मो० क० गांधी

हस्तलिखित मूल अंग्रेजी पत्र (एस० एन० ६९५६) की फोटो- नकलसे।

१६४. पत्र : एस्थर फैरिंगको

ट्रेनमें
गुरुवार [अक्तूबर २३, १९१९][२]

रानी बिटिया,

मैं चाहता हूँ कि तुम आश्रममें लोगोंसे खूब घुल-मिलकर घरकी तरह रहो। मैं नहीं चाहता कि तुम ऐसा सोचो या तुम्हें ऐसा लगे कि तुम अजनबियोंके बीच रह रही हो। हर रोज हिन्दुस्तानीके कुछ शब्द सीखा करो तो भाषाकी बाधा अपने-आप दूर हो जायेगी।

अगर आश्रमको तुम अपना घर मानती हो तो वहाँ आवश्यक घरेलू सुविधाएँ भी जुटाओ। तुम्हें उनकी माँग करनी चाहिए। एकाध पंक्ति रोज लिख भेजा करो। याद रखो कि प्रेममें भयकी गुंजाइश नहीं होती, इसमें कहीं कोई दुराव-छिपाव नहीं होता। इसलिए तुम सभीके साथ खुले हृदयसे व्यवहार करो, और मुझे इसमें जरा भी शंका नहीं कि तुम्हें हर आदमीसे इसका अनुकूल प्रतिदान मिलेगा। प्रेमको कभी कोई अस्वीकार नहीं कर सकता, क्योंकि उसमें धैर्य और कष्टसहनकी क्षमता होती है; और प्रेमका अर्थ है सेवा, इसलिए जो प्रेम करता है वह सदा सेवामें ही सुख मानता है।

अपना स्वास्थ्य ठीक रखो।

बापू

[अंग्रेजीसे]

माई डियर चाइल्ड

  1. पंजीयकने ३१ अक्तूबरके अपने पत्र द्वारा गांधीजीको सूचित किया कि मुख्य न्यायाधीशको उनका स्पष्टीकरण सन्तोषजनक नहीं लगा। साथमें उसने क्षमा-याचनाका एक प्रारूप भेजते हुए लिखा था कि गांधीजी इस रूपमें क्षमा माँग लें; देखिए "तार : बम्बई उच्च न्यायालयके पंजीयकको", ७-११-१९१९।
  2. अन्तिम वाक्यसे ऐसा लगता है कि गांधीजीने यह पत्र अहमदाबादसे पंजाब यात्राके लिए रवाना होनेके कुछ ही समय बाद लिखा होगा। प्रारम्भिक वाक्यसे यह भी प्रतीत होता है कि कुमारी फैरिंग उसी समय आश्रम में पहुँची थीं।