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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


लेकिन ऐसी आशा नहीं की जा सकती कि सब राज्य स्वदेशी धर्मकी महत्ताको एकदम स्वीकार कर लेंगे।

इसलिए उस राशिको जनतापर खर्च किया जा सकता है।

पुरुष यदि चाहें तो बहुत-कुछ कर सकते हैं; प्रत्येक गाँव में बुनकरोंको ढूंढ निकालें तथा उन्हें प्रोत्साहन दें।

किसानोंको रुई संचित कर रखनेका सुझाव दें।

अपने सगे-सम्बन्धियोंमें स्त्रियोंको कातनेका सुझाव दें।

यह काम करनेके लिए :

(१) चरखोंकी;

(२) रुईकी पुनियोंकी; और

(३) पूनी देकर सूत लेने और पैसा चुकानेकी व्यवस्था करना आवश्यक है।

बादमें बुनाईके लिए :

(१) सूत देनेकी;

(२) उस प्रमाणमें कपड़ा लेने और उसका पैसा चुकानेकी व्यवस्था करनेकी;

(३) अन्ततः उस कपड़ेका प्रचार करने अर्थात् उसे बेचने के लिए दूकान रखनेकी जरूरत है।

इतना काम करनेके लिए उद्योगी और ईमानदारीसे काम करनेवाले व्यक्तियोंकी आवश्यकता होगी। बिना पैसेके कोई काम नहीं कर सकता, इसलिए यदि ईमानदार व्यक्ति मिल जायें तो उन्हें जीविकाके योग्य पैसा देने में उपर्युक्त दानका उपयोग हो सकता है। काठियावाड़के सेवक मण्डल इस कार्य में पूरी सहायता कर सकते हैं। उसके लिए यदि प्रतिष्ठित लेकिन काम करनेवाले स्त्री-पुरुषोंकी एक बड़ी समितिका गठन किया जाये और उसके अन्तर्गत एक उप-समिति बनाई जाये तो काम जल्दी हो सकता है। उम्मीद है कि जो लोग इस कार्यमें वेतन लेकर अथवा अवैतनिक रूपसे भाग लेना चाहते हैं वे समय रहते आश्रमके पतेपर पत्र लिखेंगे।

लेकिन जबतक स्त्रियाँ इस कार्यमें आगे बढ़कर भाग नहीं लेतीं तबतक यह कार्य जोरसे नहीं चल सकता। कातनेवाली मुख्य रूपसे तो स्त्रियां ही होती हैं। राष्ट्रका अक्षय भण्डार मानो उन्हींके पास है; क्योंकि उनके पास बड़ा अवकाश है। उस फालतू समयका उपयोग करते हुए यदि वे पैसे भी लें तो वह जनताकी सेवा ही होगी।

मैं जब-जब काठियावाड़ जाता हूँ मुझे बड़ा स्नेह मिलता है। इस प्रेमके चिह्न-स्वरूप - छोटे-बड़े, उच्च और सामान्य, राजा प्रजा - सबसे शुद्ध स्वदेशी धर्मका पालन किये जानेका वचन माँगता हूँ, इस धर्मका वे सहज ही पालन कर सकते हैं।

मैं प्रतिवर्ष काठियावाड़से एक करोड़ रुपये के कपड़े उत्पादनकी आशा रखता हूँ। कहनेका अभिप्राय यह है कि मेरा प्रयास काठियावाड़के लोगोंमें प्रतिवर्ष एक करोड़ रुपया वितरित करनेका है। मैं २५,००० रुपयेकी उपर्युक्त रकमको इस उद्देश्यके लिए खर्च करना चाहता हूँ। काठियावाड़में चतुर स्त्रियाँ और चतुर बुनकर हैं, लेकिन उन्हें इकट्ठा करनेकी तथा उन्हें कामपर लगानेवाले व्यक्तियोंकी आवश्यकता है।