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टिप्पणियाँ


जब मैं काठियावाड़ से असंख्य स्त्री-पुरुषोंको बम्बई जानेवाली हरएक गाड़ीकी तरफ पागलोंके समान भागते हुए देखता हूँ तब मुझे बड़ा दुःख होता है। वे काठियावाड़ में [रोजी] नहीं कमा सकते इसलिए भाग-दौड़ करते हैं। इतने स्त्री-पुरुषोंको, जो एक वर्षके भीतर एक करोड़ रुपयेके कपड़ेका उत्पादन कर सकते हैं, काठियावाड़ छोड़नेकी तनिक भी आवश्यकता नहीं है।

हिन्दुस्तान में थोड़े ही प्रदेश ऐसे हैं जहाँके लोगोंको जीविकाके साधनोंके अभाव में बाहर जाना जरूरी हो सकता है। हमारी रेलगाड़ियोंमें सफर करनेवाले मुसाफिरोंकी संख्या देशकी समृद्धिकी सूचक नहीं है, यह बात में अच्छी तरहसे जानता हूँ। हमने स्वदेशीका त्याग कर दिया है और यह हमारी कंगालीका एक प्रमुख कारण है । उसको पुनः अंगीकार करने में ही हमारी सुख-समृद्धिका मूल निहित है।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, २६-१०-१९१९

१६८. टिप्पणियाँ

श्रमिक बहनें

सौभाग्यवती विद्यागौरीने[१] स्त्रियोंके सम्बन्धमें जो कुछ लिखा है उसमें वैसे कोई नई बात नहीं है। लेकिन जिन बातोंको जानते हुए भी हम कोई महत्त्व प्रदान नहीं करते जब उनकी ओर हमारा ध्यान खींचा जाये तब हमें इसे नया ही मानना चाहिए। सौभाग्यवती विद्यागौरीने इस सम्बन्धमें जो उपचार सुझाये हैं उनमें से दो उपचारोंको तो स्वयं उन्होंने भी लगभग असम्भव माना है। और हमें भी वे वैसे ही जान पड़ते हैं। मालिकोंसे इस बातकी उम्मीद रखना कि वे स्त्री-श्रमिक-वर्गके प्रति दयाभाव बरतेंगे आसान बात नहीं है। हमारा तो विश्वास है कि राज-मजदूर आदि देवदूत बने बिना सभ्य बन सकते हैं, श्रमिक स्त्रियाँ अपने मानकी रक्षा करना सीख सकती हैं। तीनों वर्गोंको शिक्षित करनेकी आवश्यकता है। उन्हें उनकी दशाका भान करानेकी जरूरत है। जिस वर्गकी ओरसे हम पहले पहुँचेंगे उनमें पहले सभ्यता अथवा स्वाभिमानकी भावनाएँ विकसित की जा सकेंगी। हमें तीनों वर्गोंके पास पहुँचनेकी आवश्यकता है जो देशभक्त हैं, जो प्रत्येक वर्गके सम्पर्क में आते हैं वे इन तीनों वर्गोंसे अनुरोध कर सकते हैं। यदि सौभाग्यवती विद्यागौरी अपने जैसी प्रौढ़ बहनोंका एक मंडल बनाकर श्रमिक-स्त्रियों में प्रवेश करेंगी तो उन्हें जो असम्भव जान पड़ता है वह सम्भव हो सकेगा।

मुनीमोंकी दिक्कतें

श्री पोपटलाल नानजीने हमें मुनीमों [गुमाश्तों आदि] की मुसीबतोंके सम्बन्धमें एक पत्र भेजा है। जिसमें वे लिखते हैं कि अनेक व्यापारी उनके साथ अभद्र व्यवहार

  1. श्रीमती विद्यागौरी आर० नीलकंठ, एक समाज सेविका।