१६९. गया वर्ष—नया वर्ष
(गया वर्ष)
गत वर्षका लेखा-जोखा करना मुश्किल है। युद्ध समाप्त हो गया; परिणाम बहुत थोड़ा निकला। युद्धके समय जो आशाएँ की गई थीं वे निष्फल हुईं। इस युद्धके पश्चात् स्थायी सुलह हो जानेकी उम्मीद की जाती थी, किन्तु जो सुलह हुई है वह बरायनाम है। महाभारतसे बहुत बड़ा यह विश्व-युद्ध, इससे भी अधिक बड़े किसी युद्धका बीज [मात्र] जान पड़ता है। युद्धोपरांत अमेरिका, फ्रांस और इंग्लैंड में जबरदस्त अशान्ति फैल गई है। यह स्थिति देखकर मन परेशान हो जाता है; समझमें नहीं आता कि इससे किस निष्कर्षपर पहुँचें।
इस ओर हिन्दुस्तान में चारों ओर निराशा दिखाई देती है। युद्धके अन्तमें हिन्दुस्तानको कुछ ठोस चीजें मिलनेकी आशा थी, लेकिन कुछ भी नहीं मिला। एक तो सुधारोंका दिया जाना ही कठिन है; दिये भी गये तो वे लगभग व्यर्थ ही होंगे। कांग्रेस-लीग योजना और फिर उसमें भी कांग्रेसकी योजना, पता ही नहीं चलता इनका क्या हुआ। जो हो जाये गनीमत है। पंजाबपर कहर बरपा; निरपराध व्यक्ति मारे गये; अधिकारियोंने बहुत तकलीफ दी। उनके तथा लोगोंके बीच अविश्वासकी खाई और भी चौड़ी हो गई। इस सबका क्या हिसाब बैठाया जाये? कैसे तय किया जाये कि तमाम लेन-देन के बाद क्या हासिल हुआ और क्या खोया है? या हासिल कुछ नहीं हुआ है, खोया ही खोया है?
निराशाके ऐसे गहन बादलोंमें से कोई किरण फूटती दिखाई देती है अथवा नहीं? सत्याग्रहका सूर्य छः अप्रैलके दिन समस्त भारतपर चमका। बादल छँटे और किरणें स्पष्ट प्रकाशमें आई। उसमें पंजाब और अहमदाबादपर ग्रहण लगा तथा कुछ कालिख अभीतक बाकी है। तथापि लोगोंको धीरे-धीरे सत्याग्रहकी पहचान होती जा रही है। १७ अक्तूबरको हिन्दुस्तान में अनेक स्थानोंपर अत्यन्त शान्तिसे हड़ताल की गई। आस्तिकोंने उस दिन उपवास रखे और प्रार्थनाएँ कीं। हिन्दुओंने मुसलमानोंके दुःखमें भाग लेकर उनकी आशा और उत्साहमें वृद्धि की तथा हिन्दू-मुसलमानोंकी स्नेह-गाँठको और भी मजबूत किया। अब इसे खोल पाना बहुत कठिन होगा।
यदि कोई यह पूछे : "पिछले वर्ष हिन्दुस्तानमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात क्या हुई" तो हम यही कहेंगे कि "हिन्दुस्तानने—राजा-प्रजाने—जाने-अनजाने सत्याग्रहको थोड़े अंशोंमें स्वीकार किया, वही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात थी।" और उसके प्रमाण में १७ अक्तूबर के उदाहरणको हम जनताके सम्मुख रखेंगे।
हिन्दुस्तान की आशा सत्याग्रहमें ही निहित है।
(नया वर्ष)
और यह सत्याग्रह क्या है? मैं अनेक बार उसका वर्णन कर चुका हूँ। लेकिन जैसे सहस्रमुखी शेषनाग भी सूर्यका पूरा वर्णन नहीं कर सकता वैसे ही