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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सत्याग्रह रूपी सूर्यका वर्णन नहीं किया जा सकता। तथा सूर्यको नित्य देखनेके बावजूद जैसे हम उसके बारेमें लगभग कुछ नहीं जानते वैसे ही सत्याग्रहके वास्तविक रूपको भी हम बहुत नहीं पहचानते।

स्वदेशी, सामाजिक तथा राजनैतिक सुधारोंमें सत्याग्रह छिपा हुआ है एवं जिस हदतक वे सत्याग्रहकी नींवपर प्रतिष्ठित हैं उसी हृदतक वे चिरस्थायी हो सकते हैं। सत्याग्रहका मार्ग पिटी-पिटाई लकीरसे अलग है, इसलिए वह एकाएक हमें सूझता नहीं है। उस मार्गपर चलनेवाले व्यक्ति भी बहुत थोड़े हैं और उसपर पदचिह्न भी दिखाई नहीं देते, इसीसे लोग उसपर जाने में झिझकते हैं। फिर भी धीरे-धीरे लोग उसे ग्रहण करते जा रहे हैं—यह बात हमें स्पष्ट दिखाई देती है।

सत्याग्रह अर्थात् कानूनकी सविनय अवज्ञा, जो लोग सत्याग्रहको केवल इसी रूपमें पहचानते हैं उन्होंने सत्याग्रहको जाना ही नहीं है। इसमें सन्देह नहीं कि सत्याग्रहके कठिन नियमोंमें कानूनकी सविनय अवज्ञा भी आ जाती है। लेकिन जिन्होंने कानूनका पालन करना सीखा है, वही उसे तोड़नेकी कला भी जानते हैं। जो जोड़ने में पारंगत है वही तोड़नेका हकदार हो सकता है। कविने कहा है :

सत्यका मार्ग शूरोंके लिए है,
इसमें कायरका कोई काम नहीं।

यह अनुभवपर आधारित है। स्वदेशी सत्याग्रह है। उसका पालन, उसका प्रचार कायर स्त्री-पुरुष नहीं कर सकते। हिन्दू-मुसलमानोंके बीच भाईचारेकी भावनाका विकास भी कायर नहीं कर सकता। मुसलमान हिन्दूको अथवा हिन्दू मुसलमानको खंजर भोंके इसे चुपचाप शान्तिसे सहन कर लेना कायरका काम नहीं हो सकता। यदि ये दोनों इसे साथ लें तो स्वराज्य हस्तामलकवत् ही है। तब हमें उस मार्ग पर जानेसे कोई रोक ही न सके; और दोनोंको धार्मिक प्रवृत्तिका होनेके कारण हिन्दुस्तानके सहज धर्मका लाभ भी मिले। हम नये वर्षके आरम्भमें ईश्वरसे प्रार्थना करते हैं :

"हे प्रभु! तू हिन्दुस्तानको सत्यके मार्गपर ही अग्रसर करना; वैसा करते हुए उन्हें स्वदेशी धर्म [का पालन करना] सिखाना; तथा हिन्दुस्तान में रहनेवाले हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, यहूदी और पारसियोंके बीच शुद्ध एकताको बढ़ाना।'

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २६-१०-१९१९