१७०. सन्देश : अमृतसरके लोगोंको[१]
[लाहौर
अक्तूबर २७, १९१९]
लोगोंको मेरी ओरसे सूचित कर दें कि मेरे वहाँ न आनेका कारण केवल यही है कि मैं वहाँ आनेका समय नहीं निकाल पाया, क्योंकि में जिस कामसे आया हूँ उसके सिलसिले में अभी लाहौर में मेरी उपस्थिति आवश्यक है। आशा है जल्द ही अमृतसर के मित्रोंसे मुलाकात होगी।
- [अंग्रेजीसे]
- लीडर, २-११-१९१९
१७१. पंजाबकी चिट्ठी—१
[अक्तूबर २७, १९१९][२]
जब मैंने अप्रैल में पंजाब पहुँचनेका प्रयत्न किया था तब मुझे यह आशा थी कि मेरे दिल्ली और लाहौर जानेसे शान्ति हो जायेगी। दिल्लीसे मुझे स्वामी श्रद्धानन्दजीने वहाँ जानेके लिए कहा था और अमृतसरसे डॉक्टर सत्यपालने इसका अनुरोध किया था। दोनोंका उद्देश्य यह था कि वहाँ शान्ति हो जाये। इस बीच डॉ॰ सत्यपाल और डॉ॰ किचलूको मौन धारण करनेका आदेश दिया गया और अन्ततः वे गिरफ्तार भी कर लिये गये। मुझे दिल्ली पहुँचनेसे पहले रोक लिया गया और गिरफ़्तार कर लिया गया। अन्तमें मुझे बम्बई प्रदेशमें ही रहने तथा पंजाबमें प्रवेश न करनेका आदेश दिया गया। परिणामसे हम परिचित हैं। यदि मुझे गिरफ्तार न किया होता तो जो अशान्ति फैली वह कभी न फैल पाती।
बादमें मेरे विरुद्ध जारी किया गया आदेश रद कर दिया गया और में अन्ततः पंजाब गया। २४ अक्तूबरको में लाहौर पहुँचा। स्टेशनपर लोगोंकी भीड़का पार न था। माननीय पंडित मालवीयजी भी स्टेशनपर उपस्थित थे। स्टेशन से गाड़ीतक पहुँचने में चालीस मिनट लगे। भीड़में राह बनाना बहुत ही मुश्किल था। दो-तीन
- ↑ गांधीजीको २७ की दोपहरमें अमृतसर पहुँचना था। उसी दिन दोपहर में मालूम हुआ कि उन्हें पंजाब जाँच समितिको बैठकमें शामिल होने दिल्ली जाना है, इसलिए वे अमृतसर नहीं आ रहे। आठ बजे रातमें गांधीजीने टेलीप्रिंटर द्वारा अपना यह सन्देश भेजा था।
- ↑ अन्तिम अनुच्छेदमें गांधीजीकी लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदयके साथ हुई जिस मुलाकातका उल्लेख है वह इसी तारीखको हुई थी। उस दिन सोमवार था। इस क्रमके आगेके कुछ लेख भी सोमवारको लिखे गये थे।