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पत्र : एस्थर फैरिंगको

बहुत हिम्मत बँधाई। पंडित मोतीलाल नेहरूने अपनी वकालततक की उपेक्षा की। स्वामी श्रद्धानन्दजी तो पंजाबके ही हैं इसलिए उनके द्वारा की गई सेवाओंके विषय में कुछ कहनेकी आवश्यकता नहीं रह जाती। पंजाब में कितने ही अन्य नेता यथाशक्ति कार्य कर रहे हैं। श्री एन्ड्रयूजकी सेवाओंका मूल्यांकन करना तो असम्भव है। वे चुप रहकर अपना काम करते ही रहते हैं। कह सकते हैं बाँया हाथ क्या करता है—उनके दाँये हाथको इसकी खबर नहीं होती। मैं देखता हूँ कि उनके द्वारा की जानेवाली सेवा शुद्ध गुप्तदानका एक अच्छा उदाहरण है। जहाँ दूसरोंके लिए पहुँचना अत्यन्त कठिन होता है श्री एन्ड्रयूज वहाँ [सहज ही] पहुँच जाते हैं।

यहाँ सैकड़ों भाइयों और बह्नोंसे हमेशा मिलना होता रहता है। हिन्दुस्तान [के लोगों] की अपूर्व श्रद्धाकी झांकी भी यहाँ मिलती ही रहती है। अधिकारी-वर्ग में से मैं यहाँके डिप्टी कलेक्टर श्री बटलर तथा लेफ्टिनेन्ट गवर्नर महोदयसे भेंट कर चुका हूँ। जेलमें रहनेवाले नेताओंसे मिलनेका प्रयत्न कर रहा हूँ और उम्मीद है कि मेरी यह इच्छा थोड़े समय में पूर्ण होगी।

[गुजराती से]
नवजीवन, २-११-१९१९
 

१७२. पत्र : एस्थर फैरिंगको

लाहौर
सोमवार [अक्तूबर २७] १९१९

रानी बिटिया,
तुम्हारा पत्र मुझे मिला।
मैं यहाँ बहुत अधिक व्यस्त हूँ। शायद मैं नवम्बरके आरम्भमें न आ पाऊँ। श्री एण्ड्रयूज यहीं हैं और हम दोनों अक्सर तुम्हारे बारेमें बात करते हैं। अपना स्वास्थ्य ठीक रखना।
सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड