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१७३. पत्र : एस्थर फैरिंगको

लाहौर
[अक्तूबर २८, १९१९]

रानी बिटिया,

तुम्हारे दो पत्र मिले। मैं आज ही श्री एन्ड्रयूजके साथ दिल्ली रवाना हो रहा हूँ।

यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि तुम्हें वहाँ घरकी तरह लग रहा है। मेरी उत्कट इच्छा है कि तुम अपनी सेहत बनाये रखो और पहलेसे ज्यादा स्वस्थ हो जाओ। और निस्सन्देह इसके लिए सबसे अच्छा रास्ता यही है कि किसी बातकी चिन्ता मत करो। किसी भी बातकी बहुत अधिक परवाह न करो और जो अनुकूल पड़े सो बनाओ और खाओ।

बा ने लिखा है कि तुम उसकी देख-भाल कर रही हो।

किसी पत्र में यहाँके कामका भी वर्णन करूँगा। काम कठिन है, लेकिन साथ ही उपयोगी भी और लोगोंको इससे लाभ होता है।

अभी तो 'यंग इंडिया' के लिए मत लिखो; हालाँकि शिक्षा-पद्धतिके बारेमें लिखो तो कोई हर्ज नहीं है पर में सरकारको परेशान नहीं करना चाहता। फिलहाल तो अपने रहन-सहनका ढंग ही ऐसा बनाओ जिससे आसपासके लोग प्रभावित और आकर्षित हों श।

सस्नेह,

बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड,
 

१७४. पत्र : रवीन्द्रनाथ ठाकुरको

दिल्लीके पतेपर
मार्फत प्रिंसिपल रुद्र
अक्तूबर २८ [१९१९]

प्रिय गुरुदेव,

मैं अभी-अभी पंजाब पहुँचा हूँ और इस विचारसे मुझे बड़ी खुशी है कि आखिरकार में इस विपदग्रस्त क्षेत्रको देखने आ सका। आज दिन भर में लाहौरमें हूँ। रातको एन्ड्रयूज और मैं दोनों समितिके कामके सिलसिले में दिल्ली जा रहे हैं।

पत्र लिखने का उद्देश्य आपको यह बताना है कि एन्ड्रयूजने इस प्रान्तके लोगोंकी कितनी बड़ी सेवा की है। उन्होंने ऐसा काम किया है जो अन्य कोई भी नहीं कर कीर्तिके प्रति इतने उदासीन हैं कि अपनी निरपेक्ष सेवाके सकता था। और वे यश एवं