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भाषण : लाहौर में

माहात्म्यका भान दूसरोंको तो क्या स्वयं अपने-आपको भी नहीं होने देते। आपने उन्हें इस विपदके मारे पंजाबमें काम करने के लिए मुक्त कर बड़ा अच्छा किया। अब में पंजाबका काम समाप्त होते ही [उन्हें] दक्षिण आफ्रिका जानेको मना रहा हूँ। वे स्वयं तो शान्तिनिकेतन से बाहर जाना नहीं चाहते। मैं उनसे यही कहता हूँ कि दक्षिण आफ्रिका कामके लिए वे विशेष रूपसे उपयुक्त हैं और जब जरूरत पड़े तो उनको उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। यह तो उन्होंने मुझे बता ही दिया है कि आपने वे जो काम करना चाहें, करनेको मुक्त रखा है। और मुझे आशा है कि वे दक्षिण आफ्रिका जायेंगे। उन्हें वहाँ ज्यादा दिन नहीं रहना पड़ेगा। दो महीने काफी होंगे।

मैंने पूर्व बंगालके[१] कष्टोंमें सहायतार्थ एक कोष स्थापित करनेकी अपील की है। आप एक शब्द-चित्र[२] भेज दें तो कृपा हो। इससे मुझे लोगोंको समझाने में सुविधा होगी।

आशा है, आप स्वस्थ और प्रसन्न होंगे।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडियामें सुरक्षित गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्रकी माइक्रोफिल्म प्रतिसे।

 

१७५. भाषण: लाहौरमें

[अक्तूबर २८, १९१९]

महात्मा गांधीने २८ अक्तूबरको साढ़े तीन बजे दिनमें पंडित रामभजदत्त चौधरीके घरपर इकट्ठे लाहौरके विद्यार्थियोंके एक भारी जमावके सामने भाषण किया। प्रारम्भमें उन्होंने कुछ प्रश्न पूछे—जैसे आप किन कॉलेजोंसे आये हैं, उन कॉलेजों में विद्यार्थियोंकी संख्या कितनी है और कितने ऐसे विद्यार्थी हैं जिनपर निष्कासनकी आज्ञा अब भी लागू है इत्यादि। सभी प्रश्नोंके उत्तर पानेके बाद उन्होंने आगे कहा कि शिक्षाका उद्देश्य मात्र डिग्रियाँ प्राप्त करना नहीं; इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य और आर्थिक स्थितिपर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। लेकिन इसका अर्थ लोग गलत न लगा लें इसलिए उन्होंने अपना मन्तव्य स्पष्ट करते हुए बताया कि आजकी शिक्षा आवश्यकतासे अधिक सैद्धान्तिक है। अब कला और दस्तकारीकी व्यावहारिक शिक्षा देकर इस कमीको पूरा करना चाहिए, क्योंकि इसी तरीकेसे आजीविकाके

  1. सितम्बर १९१९ में बंगालके एक बड़े इलाके में प्रचण्ड चक्रवातके कारण धन-जनकी बड़ो हानि हुई थी।
  2. यह मालूम नहीं कि गुरुदेवने उक्त शब्द-चित्र भेजा था या नहीं।
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