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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मामलेमें आत्मनिर्भरता प्राप्तकी जा सकती है। अपनी आवश्यकताएँ यथासम्भव कमसे-कम कर देनी चाहिए। भारतकी आबादीके पंचानवे प्रतिशत लोग कृषक हैं; लेकिन जबतक ये अशिक्षित हैं तबतक कृषिकी हालत नहीं सुधार सकते।

महात्मा गांधीने आगे कहा कि मुझे विद्यार्थियोंको भयसे ग्रस्त देखकर बड़ा दुःख हुआ है। आप निर्भयता अपनायें, क्योंकि निर्भयता शिक्षाका एक अत्यावश्यक अंग है। आप देशकी गरीबीकी समस्याका अध्ययन करें और सभ्यताका अंधानुसरण करनेसे इन्कार कर दें, बल्कि आपको तो विश्वास योग्य और आत्मनिर्भर बनना चाहिए। उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि पहले आप यह जानिए कि दूसरोंके प्रति आपमें से प्रत्येकका कर्त्तव्य क्या है और फिर उसे पूरा कीजिए। अन्तमें उन्होंने उन्हें सत्य, अहिंसा आदि पाँचों यम-नियमोंका पालन करनेकी सलाह दी। ब्रह्मचर्यके पालनपर उन्होंने बड़ा जोर दिया और कहा कि यह निश्चय ही आपकी सारी कठिनाइयोंको दूर कर देगा।

[अंग्रेजीसे]
ट्रिब्यून, ३०-१०-१९१९
 

१७६. पंजाब से प्राप्त मार्शल लॉका एक और मामला

वजीराबादके श्री जमीयतसिंह बग्गाके पुत्र श्री पुरुषोत्तमसिंहने अपने पिताके मामलेका विवरण और वह चीज भी भेजी है जिसे उनके मुकदमे और निर्णयके रेकर्डकी गलत संज्ञा दी गई है। श्री जमीयतसिंह बग्गा वजीराबादके व्यापारी और महाजन हैं। उनकी अवस्था ६२ वर्ष है और उनकी आँख में बहुत बुरे किस्मका मोतियाबिंद हो गया है। उन्हें १८ मासकी कड़ी कैद और १,००० रुपये जुर्माने या जुर्माना न देनेपर ६ मासके अतिरिक्त कारावासकी सजा दी गई थी। मैं निःसंकोच कह सकता हूँ कि यह फैसला हर उस व्यक्तिके सर्वथा अनुपयुक्त है जो अपनेको न्यायाधीश कहता है। इसमें तर्कका सर्वथा अभाव है और झूठे आरोपों तथा लांछनों और गलत ढंगकी युक्तियोंकी भरमार है; और अगर दण्डित व्यक्तिके पुत्र द्वारा प्रस्तुत तथ्य सत्य हैं तो जिस मजिस्ट्रेटने यह सजा दी है वह न्यायाधीशकी कुर्सीपर बैठनेके सर्वथा अयोग्य है। लगता है अदालतकी निगाह में श्री जमीयतसिंहका दोष यह था कि वे मस्जिदवाली सभा में उपस्थित और उन्होंने हड़तालकी पैरवी की थी, और वे एक धनाढ्य व्यक्ति हैं; जैसा कि मजिस्ट्रेटने फैसलेमें लिखा है कि सफाईके गवाहोंके बयानोंपर विश्वास नहीं किया जा सकता, क्योंकि जमीयतसिंह एक धनाढ्य व्यक्ति हैं। जिस भोड़ने सैनिकोंपर पत्थर फेंके उसमें अभियुक्तका शामिल रहना मजिस्ट्रेटकी निगाह में पर्याप्त अपराध था और "यदि उसने लड़कोंको बाड़ तोड़नेसे रोका तो कोई और कारण रहा होगा, लेकिन वह भीड़के साथ तो था ही।" इस प्रकार मजिस्ट्रेटने अभियुक्त पक्षकी सभी बातें जान-बूझकर अनसुनी कर दीं। इस निर्णयकी असंगतिके सम्बन्धमें मैं जो कुछ कह रहा हूँ उसकी सत्यता जाननेके लिए पाठकोंको वह