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पंजाब से प्राप्त मार्शल लॉका एक और मामला

निर्णय अवश्य पढ़ लेना चाहिए। लेकिन अभियुक्तके पुत्रने मामलेका जो विवरण दिया है उससे प्रत्यक्ष अन्यायकी भयंकरता और भी बढ़ जाती है। क्या यह सच है कि मजिस्ट्रेटने बिना किसी पूर्व-सूचनाके अभियुक्तकी सम्पत्ति जब्त कर ली थी, घरमें रहनेवालोंके साथ, जैसा विवरणमें बताया गया है वैसा ही व्यवहार किया गया था, और यदि यह सच है तो क्या यह गैर-कानूनी काम नहीं था? क्या यह सच है कि प्रतिवादी पक्षके गवाहोंकी पेशी नहीं की गई, कि जब अभियुक्त के खिलाफ अभियोग-पत्र तैयार किया गया तब उसके वकीलको अदालतमें मौजूद रहनेका मौका नहीं दिया गया था? इस कीमती फैसलेके बारेमें बस इतना ही कहूँगा।

प्रतीत होता है कि फैसलेके पहले तथा उसके बाद अभियुक्तके साथ किया गया व्यवहार भी अदालतकी इस कार्रवाईके सर्वथा अनुरूप ही था। अभियुक्त के हाथों में हथकड़ियाँ डालकर उसे बगलमें अपना बिस्तर दबाकर पैदल चलवाना अमानवीय था। इसे पढ़कर जनरल हडसनके उस भाषणका स्मरण हो आता है जो उन्होंने लोगोंको हाथों और घुटनोंके बल चलनेकी आज्ञाके सम्बन्धमें दिया था और प्रसंगवश कह दूँ कि जिसके बारेमें पं॰ जवाहरलाल नेहरूने सुधारकर कहा था कि इसे तो रेंगकर चलनेकी आज्ञा कहना चाहिए। स्पष्ट है कि रेंगकर चलने की आज्ञा देनेवाले लोगोंकी तरह ही इन अधिकारियोंकी कार्रवाईका उद्देश्य भी लोगोंके मनमें आतंक पैदा करना था। अभियुक्त के साथ जो अपमानजनक और क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया, उसका और कोई कारण समझमें आता ही नहीं। उसने विश्वयुद्धके दौरान वजीराबादमें सबसे अधिक युद्ध-ऋण देकर और रंगरूटोंकी भरती करके सरकारको जो सहायता पहुँचाई थी, उसका भी कोई खयाल नहीं किया गया। जब उसे कठघरे में खड़ा करके उसके साथ किसी आम बदमाशके उपयुक्त व्यवहार किया गया तो सरकारकी वफादारीसे सहायता करनेकी जो सनद उसे प्राप्त थी वह भी उसके किसी काम न आई।

पंजाब सरकारने बादमें इस दण्डको घटाकर ६ मास कर दिया है, इसके लिए मैं पंजाब सरकारको मुबारकबाद नहीं दे सकता, क्योंकि अभियुक्त तो पूर्ण रूपसे रिहा किये जानेका अधिकारी था। पुरुषोत्तमसिंह के विवरणसे मालूम होता है कि अब पुनरीक्षणाधिकारी न्यायाधीशों द्वारा इस मुकदमेकी पुनः जाँच की जायेगी। मैं इस पुनरीक्षक न्यायाधिकरणके बारेमें अपनी आशंका पहले ही प्रकट कर चुका हूँ। जिस ढंगसे इसका गठन हुआ है उससे किसी तरह की आशा या विश्वास पैदा नहीं होता। यदि सरकार इस तरह की भयंकर भूलोंको सुधार नहीं सकती और अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिए इस तरहके न्यायाधिकरणका निर्माण करती जाती है, तो वह प्रजाके आदर और विवेकपूर्ण सहयोगकी पात्र न रहेगी। जो लोग मर गये वे अब लौट नहीं सकते, लेकिन यह असह्य है कि जो लोग अकारण ही जेलोंमें सड़ रहे हैं, उन्हें ऐसे न्यायाधिकरणके समक्ष अपनी निर्दोषता प्रमाणित करनेका अवसर नहीं दिया जा रहा है, जिसपर उनको तथा जनताको पूरा विश्वास हो सकता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २९-१०-१९१९