पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/३१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१७७. भाषण : दिल्लीको सभामें[१]

[अक्तूबर २९, १९१९]

श्री गांधीने कहा कि मैं तो भाषण देने या सुननेसे ऊब गया हूँ । इस समय आवश्यकता कर्म और सत्यकी है, भाषणोंकी नहीं। लोगोंसे मेरा इतना ही कहना है कि सभी सत्यपर आग्रह रखें, क्योंकि असत्यके कारण भारतीयोंमें कायरता घर कर गई है । लगता है कि वे अधिकारियोंके सामने सत्य कहने से डरते हैं । यह भारतीय चरित्रका एक बहुत बड़ा दोष है । आवश्कयता सिर्फ सत्य और कर्मकी ही है।

[ अंग्रेजीसे ]
अमृतबाजार पत्रिका, ३१-१०-१९१९
 

१७८. तार : साबरमती आश्रमको

[दिल्ली
अक्तूबर ३१, १९१९]

जबतक खिलाफतके सवालका सन्तोषजनक निबटारा नहीं होता तबतक [हम] शान्ति समारोह नहीं मना सकते।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे गवर्नमेंट रेकर्ड्स।
  1. स्वामी श्रद्धानन्दजीकी अध्यक्षतामें आयोजित सार्वजनिक सभामें इंटर कमेटीसे यह अनुरोध करते हुए प्रस्ताव पास किये गये कि वह विभिन्न हितोंको अपने-अपने वकीलों द्वारा कमेटीके सामने अपने-अपने पक्षका प्रतिनिधित्व करनेकी अनुमति दे। सभाने कमेटीके कार्यकालतक के लिए गिरफ्तार प्रमुख नेताओंको भी छोड़ देने और पंजाबके न्यायालयों द्वारा दी गई सजाओंकी फिरसे सुनवाई करने और जिन मामलों में पर्याप्त सबूत न हो उनमें नये सबूत पेश करवानेके अधिकार सहित दो न्यायाधीशोंकी नियुक्ति की माँग की थी। समाचारके अनुसार गांधीजीने अस्वस्थताके कारण बैठे-बैठे ही भाषण दिया।