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१८३. पत्र : अखबारोंको[१]

दिल्ली
नवम्बर १, १९१९

कई मित्रोंने पूछा है कि आगामी शान्ति समारोहके बारेमें हमारा क्या रुख होना चाहिए। मैं जानता हूँ कि खिलाफत दिवसपर कुछ सभाओं में प्रस्ताव पास किये गये थे कि यदि खिलाफतका सवाल सन्तोषजनक ढंगसे हल नहीं हो जाता तो मुसलमान इन समारोहोंमें भाग नहीं ले सकेंगे। जबतक यह बड़ा सवाल हल नहीं हो जाता और जबतक मुसलमानोंकी भावनाओंको घातक चोट पहुँचनेका खतरा बना हुआ है तबतक भारतीयोंके लिए कोई शान्ति नहीं हो सकती। जबतक हजारों मुसलमान दुःख या अनिश्चय में पड़े हुए हैं तबतक हिन्दुओं, पारसियों, ईसाइयों, यहूदियों और उन अन्य सभी लोगोंके लिए, जो भारतमें पैदा हुए हैं या जिन्होंने उसे अपना देश मान लिया है, इन आगामी आनन्दोत्सवोंमें हिस्सा ले पाना सम्भव नहीं। मैं समझता हूँ कि वाइसराय महोदय यदि चाहें तो महामहिम सम्राट्के मन्त्रियोंको बता सकते हैं कि जबतक खिलाफतका सवाल हल नहीं हो जाता तबतक समारोहोंमें भारतीय हिस्सा नहीं ले सकते। और मैं पूरी आशा करता हूँ कि महामहिमके मन्त्रिगण इसके पहले कि हमें शान्तिके उत्सवोंमें हिस्सा लेनेको कहें, इस सवालका सम्माननीय समझौता करवाने और उसे प्रकाशित करानेकी आवश्यकताको समझेंगे।

[अंग्रेजी से]
लीडर, ३-११-१९१९
 

१८४. भेंट : एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाके प्रतिनिधिको[२]

[दिल्ली
नवम्बर १, १९१९]

यह बहुत ही खेदका विषय है कि वाइसराय महोदयको श्री मॉण्टेग्युने जो सन्देश भेजा है, उससे स्थिति बिलकुल बदल गई है। तथापि मैं महसूस करता हूँ कि आयोगमें[३] भारतीय प्रतिनिधियोंकी नियुक्तिका आग्रह करनेसे हमारे पक्षके मामलेको, जो इतना अधिक मजबूत है, नुकसान पहुँचेगा। यदि श्री शास्त्री-जैसा कोई एक प्रतिनिधि

  1. यह पत्र कई प्रमुख समाचारपत्रोंके अतिरिक्त ५-११-१९१९ के यंग इंडिया में भी छपा था।
  2. इस भेंटका विवरण अनेक प्रमुख समाचारपत्रोंमें प्रकाशित हुआ था।
  3. यह आयोग दक्षिण आफ्रिका संघकी सरकार द्वारा नियुक्त किया गया था। इसका उद्देश्य दक्षिण आफ्रिकामें एशियाइयोंके व्यापार करने और भू-स्वामित्वके अधिकारके प्रश्नकी जाँच करना था।