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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सर बेंजामिन रॉबर्ट्सनके साथ-साथ दक्षिण आफ्रिकी सरकार तथा शीघ्र ही नियुक्त होनेवाले आयोगके सामने भारतीयोंका मामला पेश करनेके लिए नियुक्त कर दिया जाये तो यह भी लगभग उतनी ही अच्छी चीज होगी। मेरी रायमें हमें इस बातपर जोर देना चाहिए कि आयोगकी जाँचका क्षेत्र समुचित रूपसे विस्तृत होना चाहिए, क्योंकि जहाँतक हमारी जानकारी है, [दक्षिण आफ्रिकी] संघ सरकारकी ओरसे बहुत ही सीमित क्षेत्र प्रस्तावित किया जायेगा। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' इस प्रश्नपर जनताकी—चाहे वह किसी वर्ग या जातिकी हो रायको सही दिशामें मोड़ने तथा समवेत बनानेका कार्य करके सचमुच बहुत बड़ी सेवा कर रहा है। इतना ही पर्याप्त नहीं होगा कि आयोगके सामने विचारके लिए केवल व्यापारका प्रश्न रखा जाये। फिलहाल [भारतीयोंके] राजनीतिक दर्जेंका प्रश्न अलग रखते हुए १८८५ के कानून ३ पर पूरी तरह पुनर्विचार किया जाना चाहिए। हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि दक्षिण आफ्रिकामें वैध रूपसे बसे हुए भारतीयोंको व्यापार सम्बन्धी और सम्पत्तिके पूरे अधिकार पुनः वापस दिलाये जायें। आस्ट्रेलियातक ने इसकी अनुमति दे दी है यद्यपि आस्ट्रेलियाने ही एशियाई विरोधी नारा सबसे पहले बुलन्द किया था। हमें इसकी भी चौकसी रखनी है कि भारतीय प्रवासियोंको जो अधिकार पहलेसे प्राप्त हैं आयोग कहीं उनमें कोई कटौती न कर दे। न्याय या औचित्यके किसी भी नियमसे भारतीय प्रवासियोंके मौजूदा अधिकार उनसे छीने नहीं जा सकते। परन्तु यदि हम सतर्क नहीं रहते और पहलेसे ही उसका प्रबन्ध नहीं करते तो ऐसी विपत्ति आनेकी पूरी सम्भावना है। वास्तवमें ऐसा संघ संसदकी प्रवर समितिके मामलेमें हुआ, जिसकी सिफारिशोंके फलस्वरूप ही उस नये कानूनका जन्म हुआ जिसकी हम इतनी निंदा करते हैं।

[अंग्रेजीसे]
न्यू इंडिया, २-११-१९१९
 

१८५. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश[१]

दिल्ली
कार्तिक सुदी ८ [नवम्बर १, १९१९]

. . .मैं माने लेता हूँ कि तुम मृत्युसे नहीं डरते। छोटे, बड़े, वृद्ध सब अपना काल आनेपर ही मृत्युको प्राप्त होते हैं। सब कोई इस देहसे ज्ञानी हो सकते हैं और वृद्ध पुरुषके शरीरमें वास करनेवाली आत्मा मूढ़ हो सकती है। ऐसी स्थितिमें किसके मरनेका शोक करें?. . .

[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी
  1. यह पत्र पानेवालेके चाचाके स्वर्गवासके प्रसंग में लिखा गया था।