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१८६. जगत्का पिता—४

किसानोंकी दशापर हमने विचार किया। गाँवोंमें स्वच्छताके नियमोंका पालन नहीं किया जाता, यह भी हमने देखा। "पहला सुख निरोगी काया" इस कहावत में बहुत सचाई है। बहुत ऊँची अवस्थाको पहुँचे हुए स्त्री-पुरुष भले ही रोगसे पीड़ित हों, परन्तु वे अपनी देखभाल कर सकते हैं। लेकिन हम जैसे, जिन्हें अभी शिखरपर पहुँचना शेष है, यदि रोगग्रस्त हो जायें तो अवश्य हाँफने लगेंगे।

अंग्रेजीमें एक कहावत है ठंडे पैरों कोई स्वर्ग नहीं जा सकता। इंग्लैंड जैसे ठंडे मुल्क में लोगोंके पाँव ठंडे रहें तो अकुलाहट होती है और ऐसी परिस्थितिमें ईश्वरकी ओर ध्यान ही नहीं जाता। कहावत है कि "स्वच्छता ही पवित्रता है।" हमारे लिए मलिन अथवा मलिन वातावरणमें रहनेका कोई कारण नहीं है। मलिनतामें पवित्रता नहीं होती, मलिनता अज्ञान आलस्यकी निशानी है। इससे किसान कैसे छुटकारा पायें? आइये, हम स्वच्छताके नियमोंकी जाँच करें।

(१) हमारे अनेक रोगोंकी उत्पत्तिका मूल हमारे पाखानों अथवा हमारे 'जंगल' जानेकी आदत है। प्रत्येक घरमें पाखानेकी आवश्यकता है। सिर्फ स्वस्थ शरीरवाले वयस्क लोग ही 'जंगल' जा सकते हैं। दूसरोंके लिए यदि पाखाने न हों तो वे मुहल्लों, गली-कूचों अथवा घरोंमें पाखाने बनाकर जमीन बिगाड़ते हैं और वायुको विषाक्त बनाते हैं। इससे हम दो नियमोंकी रचना कर सकते हैं। यदि 'जंगल' जाना हो तो गाँवसे एक मील दूर जाया जाये; वहाँ बस्ती नहीं होनी चाहिए, मनुष्योंकी आमदरफ्त नहीं होनी चाहिए, शौचके लिए बैठते समय गड्ढा खोद लेना चाहिए और शौच-क्रिया पूरी हो जानेके बाद मैलेके ऊपर अच्छी तरह धूल डाल देनी चाहिए। खोदकर निकाली हुई सब मिट्टी मलके ऊपर डाल देनेसे मैला अच्छी तरह दब जायेगा। इतनी जरा-सी मेहनत कर लेनेसे हम स्वच्छताके एक बड़े नियमका पालन कर सकते हैं। समझदार किसान अपने खेतमें शौच करें और बिना पैसे खाद उत्पन्न करें। यह हुआ एक नियम।

इस तरह 'जंगल' जानेके बावजूद प्रत्येक घरमें शौचालय होना ही चाहिए। उसके लिए डिब्बेका उपयोग करना चाहिए। वहाँ भी प्रत्येक व्यक्तिको शौच कर चुकने के पश्चात् काफी मिट्टी डालनी चाहिए जिससे वहाँ दुर्गंध न आये, मक्खी न भिनकें, कीड़े पैदा न हों। यह डिब्बा हर रोज अच्छी तरहसे साफ किया जाना चाहिए। जमीनमें गड्ढा खोदकर शौचालय बनाना व्यर्थ है। पृथ्वीमें अन्दरकी ओर एक फुट सीमातक जीव-जन्तु बिलबिलाते रहते हैं। उस परतमें हम जो मैला डालते हैं वह शीघ्र ही खाद बन जाता है। बहुत अधिक गहरी जमीनकी मिट्टीमें इतने जीव-जन्तु नहीं होते जो मैलेको खादका रूप दे सकें। इससे बहुत गहरेमें दबाया हुआ मैला विषैली गैसको पैदा करके हवाको बिगाड़ता है। डिब्बा लोहेका अथवा रोगन किया हुआ मिट्टीका होना चाहिए। इसमें भी पैसेका खर्च नहीं, सिर्फ मेहनतकी जरूरत है। पेशाब भी