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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जहाँ-तहाँ नहीं करना चाहिए। गलियोंमें पेशाब करना पाप समझना चाहिए। इसके लिए गड्ढे खुदे हुए होने चाहिए। उनमें भी यदि काफी मात्रामें मिट्टी डाली गई हो तो जरा भी दुर्गन्ध न आयेगी, छींटें न पड़ेंगे और मिट्टी भी खाद में परिवर्तित हो जायेगी। यह हुआ दूसरा नियम। प्रत्येक किसान यदि इन नियमोंका पालन करेगा तो उसके आरोग्यमें वृद्धि होगी, इतना ही नहीं उसे आर्थिक लाभ भी होगा। क्योंकि बिना मेहनतके ही उसे कीमती खाद मिलेगी।

(२) गलियोंके बीचमें थूकना नहीं चाहिए, नाक साफ नहीं करनी चाहिए। कुछ लोगोंका थूक इतना विषैला होता है कि उससे कीटाणु उड़ते हैं और क्षय रोग पैदा होता है। रास्तेमें थूकना कितने ही स्थानोंपर अपराध माना जाता है। और जरदा खाकर जो लोग थूकते हैं वे तो दूसरोंकी भावनाओंका तनिक भी विचार नहीं करते। थूक, बलगम आदिपर भी धूल डाल देनी चाहिए।

(३) पानीके सम्बन्धमें किसान लोग अत्यन्त लापरवाही बरतते हैं। कुएँ, तालाब आदि जिनसे पीने और खाना पकानेका पानी लिया जाता है अवश्य स्वच्छ होने चाहिए। उनमें पत्ते नहीं पड़े होने चाहिए। उसमें स्नान करना या पशुओंको नहलाना और कपड़े आदि धोना ठीक नहीं। यहाँ भी शुरूमें थोड़ी-सी मेहनत करनेकी आवश्यकता है। कुआँ साफ रखना तो एक सहज-सी बात है। तालाब साफ रखना उससे जरा कठिन है। लेकिन यदि लोगोंको [इसके सम्बन्धमें] तालीम दी जाये तो बिलकुल सहज काम है। अशुद्ध और अस्वच्छ पानी पीनेसे उबकाई आये तो हम पानीकी स्वच्छताके नियमोंका आसानीसे पालन कर सकते हैं। पानी हमेशा स्वच्छ एवं मोटे कपड़ेसे छानना चाहिए।

एक वृद्धा एक मेज साफ कर रही थी। वह उसपर साबुन लगाती और झाड़नसे पोंछती, फिर भी मेज थी कि साफ ही नहीं होती थी। वृद्धाने साबुन भी बदला, झाड़न भी बदले लेकिन मेज फिर भी वैसीकी-वैसी। किसीने कहा, "बूढ़ी माँ, झाड़नके बदले साफ कपड़ा लो तो मेज अभी साफ हो जायेगी।" वृद्धा समझी। इसी तरह हम मैले वस्त्रसे छानें अथवा पोंछें, उसकी अपेक्षा न छानना ही बेहतर है।

(४) गलियोंमें कूड़ा नहीं फेंका जाना चाहिए, इस नियमके बारेमें कुछ समझाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। कूड़े-कचरेका क्या किया जाये इसका एक शास्त्र है। काँच, लोहे आदिको जमीनको गहरा खोदकर दबाना चाहिए। छाल और दातुनोंके चिरे हुए सिरोंको धोकर सुखानेके बाद जलाने के उपयोगमें लाया जा सकता है। चिथड़ों को बेच देना चाहिए। जूठन और सब्जियोंके छिलके आदिको [जमीनमें] गाड़कर उनकी खाद बनाई जा सकती है। इस तरह बनाई हुई खादके ढेर मैंने देखे हैं। चिथड़ोंका कागज बनता है। गाँवमें कूड़ा ले जानेवाले व्यक्तिकी कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, कारण कि [वहाँ] कूड़ा बहुत कम होता है और वह भी मुख्यतः खाद बनाने योग्य होता है।

(५) गाँव अथवा घरोंके आसपास ऐसे गड्ढे नहीं होने चाहिए जिनमें पानी भर जाता हो। जहाँ पानी नहीं होता वहाँ मच्छरोंकी उत्पत्ति नहीं होती और जहाँ