पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/३१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

का बल है। इसपर हस्ताक्षर लेनेके बाद कार्यवाहक चुप बैठनेवाले नहीं हैं। इसलिए हम आशा करते हैं कि रौलट आवेदनपत्रको अमूल्य समझकर सभी उसपर हजारों हस्ताक्षर लेनेका प्रयत्न करेंगे।

पंजाबको सहायता

गत अप्रैल महीने में पंजाबके दंगोंमें कुछ लोग हताहत हुए थे। कुछ लोग विभिन्न अदालतों द्वारा दण्डित भी किये गये थे। इन व्यक्तियोंके असहाय परिवारोंके लिए इस समय मद्रास में जो कार्य चल रहा है उसका सार हम इस अंक में अन्यत्र प्रकाशित कर रहे हैं। कलकत्ता और बम्बई में धनाढ्य लोग अधिक हैं, इसलिए वहाँ अधिक बड़ी रकम एकत्रित की जा सकी है। लेकिन मुख्य रूपसे, सामान्य मध्यम वर्गसे अधिकाधिक प्रयत्न करके अच्छी-खासी राशि इकट्ठा करनेका श्रेय मद्रासको ही है। इस नगरमें इस कोषके लिए अबतक जितनी रकम आई है उसके आँकड़े भी इस अंकमें दिये गये हैं। हमें विश्वास है कि सभी सच्चे अहमदाबादी इन्हें देखकर लज्जित होंगे। और अभी अन्तिम एक-दो प्रयत्न करने बाकी ही हैं। पंजाबके मामलेपर चारों ओर लोग बातें तो बहुत दिलचस्पीसे करते दिखाई देते हैं। लेकिन लगता है कि हममें से इस दुःखी प्रान्तके हजारों निराधार पुरुषों और विशेषतया स्त्रियों और बालकोंके लिए इस शाब्दिक सहानुभूतिको व्यावहारिक रूप देनेका विचार बहुत ही कम लोगों में जागा है। पंजाब में सैनिक कानूनके अन्तर्गत जो प्रशासन जारी किया गया था, उसकी जाँच करनेके लिए एक समितिकी नियुक्ति हुई है, पंजाबकी जनताका मामला उसके सामने पेश करने के लिए पूज्य पंडित मालवीयजी और पंडित मोतीलाल नेहरू, स्वामी श्री श्रद्धानन्दजी तथा श्री एन्ड्रयूज-जैसे महारथी अथक परिश्रम कर रहे हैं। ऐसी अवस्थामें उसपर प्रस्ताव अथवा चर्चा करनेकी कोई खास जरूरत नहीं है। लेकिन सभी, गरीब और अमीर, पुरुष और स्त्री, पंजाब के निराधार कुटुम्बोंकी सेवामें सर्वस्व नहीं तो अपना कुछ-न-कुछ अर्पित कर सकते हैं। दंगोंमें भाग लेनेवाले अथवा सजायाफ्ता व्यक्तियोंके परिवारोंको मदद देने में हिचकिचाने की कोई बात नहीं है। लड़ाईमें घायल हुए शत्रुओंकी भी सार-सँभाल मनःपूर्वक की जाती है, तो फिर हम यह आशा क्यों न करें कि गुनहगार व्यक्तियोंके निर्दोष परिवारोंको सहायता देनेका प्रेमधर्म सभी लोग अपनायेंगे।

तीर्थ-स्थान

डॉक्टर लक्ष्मीप्रसादने डाकोरजीका जो चित्रण किया है, इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। यह बात हम निजी अनुभवसे जानते हैं। डाकोरजीकी हालत ऐसी है कि स्वच्छताके नियमों का पालन करनेवाला कोई भी व्यक्ति वहाँ चौबीस घंटे नहीं टिक सकता। तालाबके आसपास लोग चाहे जैसी गन्दगी करते रहें उसके बारेमें कोई पूछने-जाँचनेवाला नहीं। तीर्थयात्री जैसे-तैसे गुजारा करते हैं। हममें डाकोरजीके सम्बन्धमें अभिमान की भावना नहीं है, यही कारण है कि वहाँका स्टेशन भी देखने में खंडहर जैसा लगता है। जहाँ प्रतिवर्ष लाखों व्यक्ति जाया करते हों वहाँ सुख-सुविधाके साधन न्यूनातिन्यून हैं।