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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गाड़ीके समान होती हैं। गाड़ीवान जिवरको हाँके उधर ही जाती हैं। लोगों की भावनाओंके उत्तेजित होनेपर जब वे स्वच्छताकी माँग करेंगे तभी नगरपालिका स्वच्छता की ओर ध्यान देगी। इसके अतिरिक्त नगरपालिकाकी बदौलत ही सुधार नहीं किये जाते बल्कि कुछ-एक लोगोंकी समझ-बूझ और दिलचस्पी पर भी इनका दारमदार होता है।

पुराना चरखा

इस शीर्षक के अन्तर्गत श्री बिहारीलाल काँटावालाका जो लेख हमने प्रकाशित किया है उसकी ओर हम प्रत्येक स्वदेशाभिमानी पाठकका ध्यान खींचते हैं। श्री बिहारीलालने जिस तरह मनन करके अपने विचार प्रगट किये हैं उसी तरह दूसरे लोग भी व्यक्त करें तो [चरखेमें] जो सुधार करने आवश्यक हैं वे समयपर किये जा सकेंगे।

हमारी धारणा है कि चरखेके वर्तमान ढाँचेको ज्योंका-त्यों बनाये रखकर भी उसमें कुछ सुधार किये जा सकते हैं और [उसपर] अधिक सूत काता जा सकता है। हम लेखकके इस मतसे बिलकुल सहमत हैं कि पुराने चरखेमें कातनेवालेको जिस कौशलसे काम लेना पड़ता है चरखेके नवीन रूप में भी वह आवश्यक होना चाहिए। श्री रेवाशंकर मेहताजी द्वारा पारितोषिक[१] घोषित किया जाना उचित जान पड़ता है। जो लोग अधिक सूत कातनेका प्रयत्न कर रहे हैं उनकी मेहनत निष्फल नहीं जा सकती। श्री बिहारीलाल के अनुभवका उपयोग करना चाहिए। यदि कातनेवाले उनके सुझावोंको ध्यानमें रखेंगे तो फलकी प्राप्ति शीघ्र होगी और वे व्यर्थकी मेहनत से बचेंगे।

"हाथसे रुई नहीं धुनी जा सकती", हम इस विचारसे सहमत नहीं हैं। आज कितने ही स्थानोंमें रुई हाथसे धुन ली जाती है और यदि वर्तमान आन्दोलनके मुख्य तत्त्व कायम रहेंगे तो दिन-ब-दिन हाथसे अधिकाधिक रुई धुनी जाया करेगी, क्योंकि इस आन्दोलनमें ऐसा खयाल किया गया है कि जहाँ रुई पैदा हो वहीं मुख्य रूपसे उसका उपयोग किया जाये। मिलोंके लिए रुई मशीनों द्वारा धुनी जाती है, लेकिन अगर हाथसे सूत कातनेके लिए रुई मशीन द्वारा धुनी जायगी तो दूनी मेहनत पड़ेगी और बिनौले बरबाद जायेंगे।

रुई धुनकर आसानी से पूनी बनानेके सरल साधन खोजने के लिए पुरस्कोर घोषित करनेके सुझावका हम स्वागत करते हैं। और जो व्यक्ति ऐसे औजार खोज निकालेंगे उन्हें हम अवश्य इनाम देंगे। इनामके लिए व्यावहारिक सुझाव प्राप्त करनेके बाद हम इनामकी निश्चित रकमकी घोषणा करनेकी भी उम्मीद रखते हैं। लेकिन हम अपने पाठकों को सलाह देते हैं कि उन्हें इस सम्बन्ध में कारीगर-वर्गकी दिलचस्पी जाग्रत करनी चाहिए। जो कारीगरोंके सम्पर्क में आते हैं वे उन्हें ऐसी खोजोंके लिए आसानीसे प्रोत्साहित कर सकते हैं।

  1. देखिए "टिप्पणियाँ", ५-१०-१९१९