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पंजाबकी चिट्ठी—२

 

दिल्लीमें सभा

शनिवार के दिन दिल्ली में एक जबरदस्त सभाका आयोजन किया गया था। यह सभा मुझसे मिलने के उद्देश्यसे तथा दिल्लीमें अप्रैल महीने में जो गोलीकाण्ड हुआ था उसमें मारे गये व्यक्तियोंकी यादगारमें भवन निर्माणके लिए पैसा इकट्ठा करनेके लिए की गई थी। सभा खुले मैदानमें बुलाई गई थी, फिर भी भीड़ इतनी ज्यादा थी कि लोग एक-दूसरेपर गिरे पड़ते थे। मुझे अध्यक्ष बनाया गया था। लोग बड़ा शोर कर रहे थे। ऐसी स्थिति में सभा कदापि नहीं की जा सकती, ऐसा मुझे प्रतीत हुआ। स्थिति जैसी थी, उसमें किसीका भी भाषण नहीं सुना जा सकता था। इसलिए मैंने उस सभाको बरखास्त करते हुए [अगली बार] स्वयंसेवकोंका प्रबन्ध करनेका सुझाव दिया और लोगोंको पहलेसे ही अधिक सावधान करने तथा सभाके नियमोंको समझाने की बात भी कही। दूसरे दिन रविवारको फिर सभा[१] हुई और उतने ही व्यक्ति लगभग ढाई घंटेतक अत्यन्त शान्तिके साथ बैठे रहे। सब भाषणोंको उन्होंने शान्त चित्तसे सुना। कहा जा सकता है कि चन्दा भी अच्छा इकट्ठा हुआ। सैकड़ों व्यक्तियोंने छोटी-छोटी रकम दी अथवा देनेका वचन दिया। मैं ये तथ्य यहाँ यह स्पष्ट करनेके लिए पेश कर रहा हूँ कि हम जैसे-जैसे सामान्य और गरीब वर्ग में प्रवेश करते जायेंगे वैसे-वैसे सभाओंमें हजारों व्यक्तियोंकी भीड़ इकट्ठी होने लगेगी। हममें ऐसी सभाओंको शान्तिपूर्वक चलानेकी शक्ति होनी ही चाहिए। समुचित व्यवस्था हो, स्वयंसेवक होशियार हों तथा लोगोंको पहले से ही [सभाके नियमोंके सम्बन्धमें] समझा-बुझा दिया गया हो तो बहुत कम प्रयत्नोंसे हम शान्ति बनाये रख सकते हैं।

प्रथम खुला अधिवेशन

समितिका पहला खुला अधिवेशन आज [सोमवारको] है।[२] यह पत्र लिखते समय-तक अभी अधिवेशन प्रारम्भ नहीं हुआ है।

आज दिल्ली प्रान्तके चीफ कमिश्नर श्री बैरनकी[३] गवाही ली जायेगी। लोगोंकी ऐसी धारणा है कि ये समझदार और सज्जन कमिश्नर महोदय यदि अप्रैल में यहाँ न होते तो [उस काण्डके] अधिक भयंकर परिणाम होते। हमारी ओरसे साक्षी देनेवाले व्यक्ति हैं स्वामी श्री श्रद्धानन्दजी, हकीम अजमल खाँ, डॉ॰ अन्सारी, डॉ॰ अब्दुर्रहमान, श्री कृष्णलाल अम्बालाल देसाई आदि। श्री कृष्णलाल स्वर्गीय दीवान बहादुर अम्बालालके सुपुत्र हैं। वे देशके इस भागमें व्यापार करते हैं।

चरखा

लाहौरमें जो बहनें मुझसे मिलने आईं, उनसे मैंने चरखेके सम्बन्धमें खूब बातचीत की और सूतकी भिक्षा भी माँगी। सैकड़ों स्त्रियाँ मुझसे मिलीं। उनमें से शायद ही किसीने यह कहा कि मुझे कातना नहीं आता। मैंने सूतकी भिक्षा माँगनी शुरू की,

  1. इस भाषणकी कोई दूसरी रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है।
  2. नवम्बर ३।
  3. माननीय श्री सी॰ ए॰ बैरन, सी॰ आई॰ ई॰, आई॰ सी॰ एस॰।