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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चलाती हैं, यह हर्षकी बात है। परन्तु मुझे पूर्ण सन्तोष तब होगा जब कि पंजाबके सभी पुरुष पंजाबके सूतका बुना हुआ कपड़ा उपयोगमें लायेंगे। अपने प्रान्तका कपड़ा न मिले तो दूसरे प्रान्तसे ले लें परन्तु विदेशी कपड़ा कदापि न पहनें, चाहे आपको बिना वस्त्र नंगे ही क्यों न रहना पड़े। भारतमें स्वदेशी वस्तुका उपयोग न होने से दरिद्रता बढ़ रही है। हमारे करोड़ों भाई अन्न-वस्त्रके बिना कष्ट पा रहे हैं। उनके कष्ट निवारणार्थ हमें स्वदेशी वस्तुओंका उपयोग करके देशको समृद्ध बनाना चाहिए। मैं सब पंजाबी बहनों तथा माताओंसे प्रार्थना करता हूँ कि आप सब लोग पंजाबका बना वस्त्र उपयोग करें। विदेशी कपड़े पहननेके बदले स्वदेशी कपड़े पहनने से हमारी शोभा विशेषरूपसे बढ़ जाती है। मैं पंजाबी भाइयोंसे याचना करता हूँ कि वे सूत कातनेका प्रण करें। यदि आप इसे मंजूर करेंगे, तो मैं बड़ा कृतार्थ हूँगा।

महात्मा गांधी
 

१९३. पत्र : एस्थर फैरिंगको

लाहौर
[नवम्बर ४, १९१९ के बाद][१]

रानी बिटिया,

तुम्हारे प्रिय पत्र मिले, परन्तु फिलहाल तुम मुझसे नियमित उत्तरकी आशा न करना। मुझे जीवनके मूल्यवान अनुभव हो रहे हैं। जब हम अपनेको स्वेच्छासे सेवाका निमित्त बना देते हैं तो उसका पुरस्कार ऐसे आनन्दके रूप में मिलता है जिसे व्यक्त नहीं किया जा सकता। अधिक फिर या मिलनेपर।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड
  1. ऐसा लगता है कि यह पत्र गांधीजीने अमृतसर की पात्रासे लौटकर लिखा था, वहाँ जनताने उनका बहुत ही प्रेमपूर्ण स्वागत किया था।